( मनोज जायसवाल)
रायपुर:- देश के किसान-मजदूर के बेटे के एक जांबाज,आदर्श आईपीएस अधिकारी और फिर आईजी बनने तक की विकास यात्रा बेहद प्रेरणास्पद है। अपनी प्रारंभिक नियुक्तियों में संवेदनशील माओवादी क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा 2 बार पुलिस ‘वीरता’ पदक तथा उत्कृष्ट प्रशासनिक सेवा के लिए छ.ग. के राज्यपाल से सम्मानित हो चुके आई पी एस रतन लाल डांगी का कैरियर चुनोतिपूर्ण रहा।

घोर नक्सलप्रभावित क्षेत्र के बीहड़ों में नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में लाने वाले के प्रयासों में सफल रहे देश के ‘जाबांज’ एवं ‘आदर्श’ आईपीएस अधिकारी रतनलाल डांगी देश के ऐसे सपूत हैं,जिन्होंने रोजी-मजदूरी जैसे कार्य से लेकर उच्च पुलिस अधिकारी के पद पर देशहित में सेवा करते वर्तमान में छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में आईजी का प्रभार भी संभाला है। आज उनके जन्मदिन के अवसर पर देश के इस सपूत की विकास यात्रा इतनी प्रेरक है कि लाखों युवा इससे प्रेरणा ले सकते हैं। आज के ही दिन 01 अगस्त 1973 को राजस्थान के नागौर जिले की परबतसर तहसील के ‘मालास’ नामक एक छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ था।

परिवार की माली हालत इतनी खराब थी कि इसे याद करते हुए रतनलाल आज भी भावविहल हो जाते हैं। इस पायदान तक पहुंचने में विषम आर्थिक परिस्थितियों के चलते काफी बाधाएं आई पर ‘आत्मविश्वास’ को गिरने नहीं दिया। उनके मजबूत हौसले का ही परिणाम रहा कि सफलता के प्रथम पायदान में ही यह मेघावी छात्र शिक्षक बन गया। जहां इस सेवा से परिवार की जरूरतों को पूरा करने कोई तकलीफें नहीं थी, लेकिन लक्ष्य ऊंचा था। शिक्षक की नौकरी के बाद उन्होंने राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षा में प्रथम प्रयास में ही सफलता पाई और वे ‘सेल्स टैक्स इंसपेक्टर’ बन गये।
यही नहीं इसके बाद पुनः दी गयी परीक्षा में उनका तहसीलदार पद पर चयन हो गया।

इसी के साथ जारी रहे प्रयासों में देश की सबसे कठिन परीक्षा सिविल सर्विसेस (यूपीएससी) की परीक्षा में उन्हें सफलता मिली और 2003 में भारतीय पुलिस सेवा में उनका चयन हुआ। उन्हें छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे संवेदनशील नक्सल प्रभावित जिलों (बस्तर, बीजापुर,कांकेर में एस पी व बाद में डी आई जी कांकेर दंतेवाड़ा, राजनांदगंव) में अपनी सेवाएं देने का अवसर मिला। इसी दौरान संवेदनशील क्षेत्र कांकेर जिले सहित सुदूर बीहड़ क्षेत्रों में वे शांति स्थापित करने में सफल होते गए, जिसकी चर्चा प्रशासनिक हल्कों में खूब हुई। बस्तर क्षेत्र में सेवा करते हुए लोगों को शिक्षा के लिए प्रेरित करते रहे। वे एक ही शब्द कहते थे कि ‘बंदूक से ज्यादा कलम की ताकत’ है, इसका उपयोग देश सेवा में, देश हित में किया जा सकता है।

रतनलाल डांगी के व्यवहार,आदर्श,कर्तव्य के लोग कायल होते चले गए और इसी का प्रतिफल रहा कि इन बरसों में सैकड़ों नक्सलियों ने अपने हथियारों के साथ आत्म समर्पण किया और समाज की मुख्यधारा में आकर रहने का निर्णय लिया। आज वे आत्म समर्पित नक्सली बेहतर ‘जीवनयापन’ कर रहे है। शिक्षा के महत्व को प्रतिपादित करते श्री डांगी ने हमेशा इस बात की शिक्षा दी कि जीवन में दो चीजें आवश्यक है प्रथम शिक्षा और दूसरा आजीविका। शिक्षा हमें ऊंचे ‘शिखर’ को ले जाती है,आजीविका भोजन की व्यवस्था के लिये मूल्यवान है। भोजन जीवन के लिए अनिवार्य है, इसी तरह शिक्षा सामाजिक जीवन में सफलता के लिए।

संघर्ष जीवन का अंग है और इससे कभी दूर ना भागें, अपितु इससे संघर्ष करें रास्ता निकालें, रास्तों में पहाड़ी आने के बाद घबराए नही, हमेशा उसे पार करने के बाद मैदान आता है। अपने कार्य में सफलता पर इस ‘आदर्श’ एवं ‘कर्तव्यनिष्ठ’ अधिकारी को भी इस बात का पूरी तरह सुकून एवं विश्वास मिला कि उनका पुलिस सेवा क्षेत्र में कार्य सफल रहा। शिक्षा के क्षेत्र में आज भी अपने संघर्ष के दिनों को याद करते वे कहते हैं कि अगर मेरा बेटा सफलता पाता है तो उसका उतना अधिक महत्व नहीं है, लेकिन किसी किसान,मजदूर का बेटा आईएएस,आईपीएस या अन्य क्षेत्रों में सफलता अर्जित करता है तो वह समाज के लिए उदाहरण पेश करता है।
जो आर्थिक रूप से सक्षम है,शिक्षा क्षेत्र में सफल है तो उसके साथ हर व्यक्ति साथ होता है पर असफल व्यक्तियों के साथ तो उनके करीबी ही साथ नहीं होते। हमें सफलता अर्जित करने के साथ-साथ अपने समाज,देश हित के लिए भी कार्य करते रहना है, तो ही इसकी सार्थकता है।

स्वयं के विकास के लिए ‘सफलता’ का कोई खास अर्थ नहीं होता, समाज के व्यापक हित, देशहित जरूरी है। सफलता के रास्ते शिक्षा से होकर जाते हैं,बिना ‘शिक्षा’ के मनुष्य पशु के समान हो जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए हमें बेटा-बेटी को समान नजरिए से देखते हुए दोनों की शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है। रतनलाल डांगी अपने स्कूली जीवन से कला जगत में रूचि रखते थे, यही कारण है कि कला जगत के ‘कलाकारों’ हेतु उनका असीम स्नेह दिखायी देता है। इसके साथ ही सामाजिक ‘सरोकार’ की भावना हमेेशा साथ रही है। आज भी वे कालेज एवं पुस्तकालय के लिए अत्यावश्यक पुस्तकों साहित्य की व्यवस्था करने की मुहिम चला रहे हैं। ग्रामीण गरीब तबके के लोगों की सहायता के लिए हमेशा वे आगे खड़े दिखायी देते हैं। साथ ही युवाओं के मार्गदर्शन के लिए “गाइड द यूथ ,ग्रो द नेशन”नाम से मिशन भी चलाते हैं,जिसका लाभ युवाओं को मिल रहा है। इसके साथ जागरूकता अभियान,साइबर क्राइम मुहिम का भी उन्होंने आगाज किया है,जिसका अच्छा रिस्पांस नजर आता है। हमेशा एक ही शिक्षा देते हुए वे कहते हैं-“सफलता आपका जन्मसिद्व अधिकार है और इस अधिकार को आपसे कोई नहीं छीन सकता।” हमेशा प्रयास करते रहें, अपना जज्बा कायम रखें हौसला बना कर रखें, सफलता कदम चूमेगी।

उन्होंने शिक्षा के लिए शहरों में जन्म होने और सफलता के लिए बड़े इंटरनेशनल स्कूलों में पढ़ाई करने के मिथक को सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि कड़ी मेहनत करने पर ग्रामीण बच्चे भी सफलता अर्जित कर सकते हैं। इस दौर में किसी बच्चे की सफलता पर अमूमन कहा जाता है कि यह तो उनका स्तर ही है उनके यहां सब उच्च शिक्षित हैं,इसे भी खारिज करते कहा कि जरूरी नहीं है कि पढ़े लिखे खानदान या शिक्षित माता पिता के बच्चे ही उच्च पदों हेतु सफलता अर्जित करते हैं बल्कि मेहनत लगन रही तो सामान्य गरीब परिवारों के बच्चे भी उच्च मुकाम हासिल कर सकते हैं। ऐसी प्रतिभाओं को सोशल मीडिया,समाचार पत्रों के माध्यम से सामने लाये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रकार की नेक सोच एवं निःस्वार्थ भावना के लिए आप लोग बधाई के पात्र हैं।
मनोज जायसवाल,
लखनपुरी(कांकेर) छत्तीसगढ़

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