मजदूर-किसान विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ पूरे प्रदेश में हुए विरोध प्रदर्शन, राजनांदगांव और बाल्को में हुई गिरफ्तारियां

कोरबा (इंडिया न्यूज़ रूम):- अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, भूमि अधिकार आंदोलन और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के देशव्यापी आह्वान पर आज यहां छत्तीसगढ़ में भी राजनांदगांव, बस्तर, धमतरी, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा, सरगुजा, बलरामपुर, रायपुर, महासमुंद, रायगढ़, चांपा-जांजगीर, सूरजपुर, मरवाही, कांकेर और गरियाबंद जिलों के अनेकों गांवों, खेत-खलिहानों और मनरेगा स्थलों में आज केंद्र में मोदी सरकार की मजदूर-किसान विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गए और कोरोना संकट के मद्देनजर गरीबों को प्रति माह प्रति व्यक्ति 10 किलो अनाज और एक-एक किलो दाल, शक्कर, तेल से और प्रति परिवार 10000 रुपये नगद राशि से मदद करने; कोयला, बैंक-बीमा और रेलवे सहित अन्य सार्वजनिक उद्योगों के निजीकरण पर रोक लगाने; मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने; बिजली कानून, मंडी कानून, आवश्यक वस्तु, कृषि व्यापार और ठेका कृषि से संबंधित मजदूर-किसान विरोधी अध्यादेशों और प्रशासकीय आदेशों को वापस लेने; किसानों को डीजल आधी कीमत पर उपलब्ध कराने; फसल का समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना घोषित करने; किसानों पर चढ़ा सभी प्रकार का कर्जा माफ करने; आदिवासियों का जल-जंगल-जमीन से विस्थापन रोकने और वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने; सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को सार्वभौमिक बनाने और सभी लोगों का कोरोना टेस्ट किये जाने की मांग जोर-शोर से उठाई गई। आयोजकों के अनुसार प्रदेश में हो रही भारी बारिश के बावजूद 50000 लोगों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया। राजनांदगांव और बाल्को में सैकड़ों मजदूरों और किसानों ने अपनी गिरफ्तारियां दर्ज करने प्रशासन को मजबूर किया है।

विरोध प्रदर्शन आयोजित करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छग प्रगतिशील किसान संगठन, राजनांदगांव जिला किसान संघ, क्रांतिकारी किसान सभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छमुमो मजदूर कार्यकर्ता समिति, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, छग किसान-मजदूर महासंघ, दलित-आदिवासी मंच, छग किसान महासभा, छग प्रदेश किसान सभा, किसान जन जागरण मंच, किसान-मजदूर संघर्ष समिति, जनजाति अधिकार मंच, आंचलिक किसान संगठन, परलकोट किसान संघ, राष्ट्रीय किसान मोर्चा और किसान महापंचायत आदि संगठनों से जुड़े संजय पराते, विजय भाई, आई के वर्मा, सुदेश टीकम, आलोक शुक्ला, केशव सोरी, ऋषि गुप्ता, राजकुमार गुप्ता, प्रशांत झा, कृष्णकुमार, संतोष यादव, पारसनाथ साहू, हरकेश दुबे, लंबोदर साव, बालसिंह, अयोध्या प्रसाद रजवाड़े, सुखरंजन नंदी, जवाहर सिंह कंवर, राजिम केतवास, अनिल शर्मा, नरोत्तम शर्मा, तेजराम विद्रोही, सुरेश यादव, कपिल पैकरा, पवित्र घोष, सोनकुंवर और नंद किशोर बिस्वाल आदि किसान नेताओं ने कहा कि कृषि क्षेत्र में जो परिवर्तन किए गए हैं, उसने कृषि व्यापार करने वाली देशी-विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों और बड़े आढ़तियों द्वारा किसानों को लूटे जाने का रास्ता साफ कर दिया है और वे समर्थन मूल्य की व्यवस्था से भी बाहर हो जाएंगे। बीज और खाद्यान्न सुरक्षा व आत्मनिर्भरता भी खत्म हो जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार आत्मनिर्भरता के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों और धरोहरों को चंद कारपोरेट घरानों को बेच रही है। उनका कहना है कि ग्राम सभा के अधिकारों की पूरी नज़रअंदाजी से देश में और विस्थापन बढ़ेगा, स्वास्थ्य पर गहरा असर होगा और पर्यावरण और जंगलों की क्षति भी होगी।

कोरोना संकट की आड़ में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आम जनता के जनवादी अधिकारों और खास तौर से मजदूरों और किसानों के अधिकारों पर बड़े पैमाने पर और निर्ममतापूर्वक हमले किये जाने के खिलाफ भी यह देशव्यापी आंदोलन आयोजित किया गया था। कृषि विरोधी इन अध्यादेशों को वापस लिए जाने की मांग करते हुए छत्तीसगढ़ के उक्त सभी संगठनों द्वारा प्रधानमंत्री को किसान संघर्ष समन्वय समिति के माध्यम से ज्ञापन भी सौंपा गया है।

किसान आंदोलन के नेताओं ने प्रदेश में बढ़ती भुखमरी की समस्या पर भी अपनी आवाज़ बुलंद की है। उनका आरोप है कि प्रवासी मजदूरों मुफ्त चावल वितरण के लिए केंद्र द्वारा आबंटित अपर्याप्त आबंटन का भी उठाव राज्य सरकार ने नहीं किया है। कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा है, लेकिन इसी अनुपात में स्वास्थ्य सुविधाएं लोगों तक नहीं पहुंच रही है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस सरकार भी बोधघाट परियोजना और कोयला खदानों के व्यावसायिक खनन की स्वकृति देकर आदिवासियों के विस्थापन की राह खोल रही है।

पिछले चार माह में प्रदेश के किसान संगठनों का यह चौथा बड़ा आंदोलन है। इन संगठनों का कहना है कि यदि केंद्र और राज्य की सरकार अपनी मजदूर-किसान विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों में बदलाव नहीं लाती, तो और बड़ा आंदोलन संगठित किया जाएगा।

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