• सामाजिक कार्यकर्ता ने की डीजीपी, एसपी से दस्तावेजों में फर्जीवाड़े की शिकायत, एफआईआर दर्ज कराने की मांग, सात साल पहले हुई थी घटना

By विशेष संवाददाता- जयप्रकाश सिन्हा
रायपुर ( इंडिया न्यूज विशेष ) राजधानी की रोज की खबरों में जो बातें पुरानी हो कर अक्सर दब जाती हैं और न्याय की कोशिशों को अक्सर  बाद में मीडिया का सहयोग नही मिल पाता और खासकर गरीबों का दोहरा नुकसान हो जाता है। ये घटना है आज से 7 साल पहले उरला के बोरझरा स्थित कंपनी “बाबा बासुकीनाथ टायर ऑइल प्लांट” में विस्फोट का मामला जो कि अदालत के फैसले के बाद फिर से गरमाने लगा है. इलाके के लोगों द्वारा अवैध रूप से संचालित इस फैक्ट्री के संचालक भालेंद्र उपाध्याय को प्रकरण में आरोपी बनाया गया था , अब भालेंद्र उपाध्याय के बरी होने के बाद इस विस्फोट से मारे गए 4 मृतक मजदूरों के परिजनों को न्याय नहीं मिलने पर पुलिस व अदालत पर सवाल उठ रहे हैं. इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम सिंह चौहान ने तत्कालीन निरीक्षक उरला थाना मीना चौधरी, आरोपी भालेंद्र उपाध्याय व उनके पिता तत्कालीन पर्यावरण अधिकारी रायपुर संतोष कुमार उपाध्याय पर गंभीर आरोप लगाते हुए सैकड़ो पेज दस्तावेज सहित पुलिस महानिदेशक व पुलिस अधीक्षक रायपुर को शिकायत किया है .शिकायत में कहा गया है कि आरोपियों द्वारा अदालत में पेश दस्तावेज झूठे हैं,मनगढ़ंत व पूर्व तारीखों के फर्जी रूप से बनाया गया है.

जब विस्फोट की यह घटना हुई थी तो अच्छी खासी जानकारी मुख्यधारा की मीडिया में लगातार प्रकाशित भी हुई और तस्वीरों से घटना की भयावहता का अंदाजा भी प्रदेश की जनता और निर्णायक नागरिक समाज ने लगा लिया और कानूनी कार्यवाही हो रही ये जान कर लोग संतुष्ट रहे, किन्तु न्याय मिलने की उम्मीद में लंबे 7 सालों के इंतजार के बाद मृतक मजदूरों, ड्राइवर के परिवारों को निराशा मिली।

शिकायत कर्ता विक्रम सिंह चौहान ने बताया की आरोपियों द्वारा दिये गए पार्टनरशिप रद्द करने का डीड, धर्मेंद्र उपाध्याय का त्यागपत्र, प्लांट के नवीनीकरण के लिये दिए गए आवेदन व आरोपियों के ही पिता डॉ संतोष कुमार उपाध्याय द्वारा अपने पद पर होने का लाभ उठा कर जारी दो आदेश पूरी तरह से फर्जी है. इन्हीं दस्तावेजों की मदद से आरोपी खुद को न्यायालय में बचाने में सफल रहे. श्री चौहान ने बताया कि श्रम न्यायालय के केस में भी सांठगांठ कर दोनों भाइयों को बरी किया गया इसलिए शिकायतकर्ता ने झूठे दस्तावेजों को कोर्ट में प्रस्तुत करने के आधार पर आरोपियों पर 420 का प्रकरण दर्ज करने की मांग की है.


उल्लेखनीय है कि 10 जुलाई 2015 को उरला के बोरझरा में स्थित “बाबा बासुकीनाथ टायर ऑइल प्लान्ट ” में हुए भयंकर विस्फोट से 3 मजदूर जिंदा जल गए थे व एक की जले हुए हालत में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई थी. मृतकों में लेबर प्रभा साहू, मेटाडोर चालक दिलीप मिश्रा, हेल्पर तोरण सोनी व दीपक दास मानिकपुरी शामिल थे. शिकायतकर्ता का कहना है कि यह कंपनी पूरी तरह से अवैध व आरोपियों भालेंद्र उपाध्याय व धर्मेंद्र उपाध्याय के पिता संतोष कुमार उपाध्याय की शह पर चल रही थी.इस कंपनी में बिना पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था के पैरालिसिस प्रक्रिया से फर्नेश ऑइल, कार्बन ब्लैक, स्टील स्क्रेब,फैब्रिकेटेड स्टील स्ट्रक्चर्स का उत्पादन होता था. इस कंपनी के टायर सप्लायर व खरीददार भी कच्चे में कारोबार करने के कारण पूरी तरह से गैरकानूनी ढंग से जुड़े हुए थे.
पुलिस महानिदेशक व पुलिस निरीक्षक को की गई शिकायत में कहा गया है कि उरला थाने के तत्कालीन निरीक्षक मीना चौधरी ,सहायक उप निरीक्षक आर एस नेताम ने इस मामले में शुरू से आरोपियों के पक्ष में काम किया,उन्हें बचाने के लिए झूठे दस्तावेज तैयार करने में साथ दिया व अदालत में भी न सिर्फ झूठा गवाह सनत कुमार तिवारी को खड़ा किया बल्कि ख़ुद पुलिस अधिकारियों ने भी झूठी गवाही दी.
शिकायत कर्ता ने बताया कि सनत कुमार तिवारी के आरोपियों से शुरू से संबंध रहे हैं,वे उनके पैतृक शहर रीवा मध्यप्रदेश के हैं. सनत कुमार तिवारी ने अदालत में अपने बयान के 5 दिन पहले आरोपी के पिता संतोष कुमार उपाध्याय को बोरझरा स्थित एक जमीन 5 लाख 47 हजार में बेचा है. इस लेन देन का संबंध गवाही से हो सकता है।

शिकायत में श्री चौहान ने कहा है कि श्रम न्यायालय व विशेष रेल्वे मजिस्ट्रेट के यहाँ जारी केस में आरोपियों के द्वारा पेश किए गए दस्तावेज झूठे हैं व शातिर दिमाग लगाकर बैक डेट में बनाया गया है,इसलिए अमान्य व फर्जी हैं.
शिकायतकर्ता ने बताया कि इस प्रकरण में सभी मृतको के परिजनों से व्यक्तिगत तौर पर संपर्क किया गया. लेकिन सिर्फ मेटाडोर चालक दिलीप मिश्रा के पिता राम उदय मिश्रा से संपर्क हो पाया. वयोवृद्ध राम उदय मिश्रा ने कहा कि वे लगातार आवेदन देकर बेटे के लिए न्याय व मुआवजा की मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनका बेटा जवानी में ही चला गया, उन्हें बुजुर्ग होकर बेटे के बच्चों की जरूरतें और जिम्मेदारी मुझे ही पूरी करनी पड़ रही है. उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण सरकारी कानूनी सहायता मिलने पर ही वे इस मामले को हाई कोर्ट में ले जा पाएंगे।

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