लेबरकोर्ट में 15 साल और हाईकोर्ट में 17 साल लंबी कानूनी लड़ाई में जीते राजेंद्र मेहता, मिलेगा 100 प्रतिशत बकाया वेतन

हाइकोर्ट ने भोपाल लेबर कोर्ट के फैसले को सही माना

भोपाल( इंडिया न्यूज रूम) एक कहावत है अंत भला तो सब भला। आज ये कहावत वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र मेहता के संदर्भ में सटीक बैठती है। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र मेहता ने 32 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर नवभारत अखबार को चारों खाने चित कर दिया है। मप्र उच्च न्यायालय ने नवभारत प्रबंधन की लेबर कोर्ट के आदेश के खिलाफ लगी याचिका को खारिज कर दिया है। अब नवभारत को वर्ष 1990 से लेकर अब तक का पूरा वेतन राजेंद्र मेहता को देना होगा।
ये जीत बताती है कि बड़े बड़े मीडिया संस्थानों के खिलाफ न्याय की लड़ाई जब पत्रकारों को भी बहुत संजीदगी से धैर्य के साथ दशकों तक लड़नी पड़ती है। तब कहीं जा कर न्याय मिल पाता है ऐसे में हमारे देश मे आम मजदूरों को मालिकों के खिलाफ न्याय लेने का संघर्ष और श्रम कानूनों का क्रियान्वयन की स्थिति समझी जा सकती है।

दरअसल बात सन 1990 की है जब मेहता नवभारत भोपाल में उप सम्पादक के पद पर पदस्थ थे। प्रबंधन ने उनके बेहतर काम को देखते हुए उन्हें बच्छावत वेतनमान देकर 2700 रुपये प्रतिमाह वेतन फिक्स कर दिया। लेकिन ये बात वहाँ काम कर रहे कई चापलूस पत्रकारों को रास नहीं आई, जिसके बात उन्होंने मालिकों के कान भरना शुरू कर दिए। परिणामस्वरूप 14 जून 1990 को प्रबंधन ने अकारण ही मेहता की सेवाएं समाप्त कर दीं। अपना काम निष्ठा और ईमानदारी से कर रहे राजेंद्र को ये बात नागवार गुजरी और उन्होंने नवभारत मालिकों के इस तुगलकी फरमान के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने की जिद पाल ली। इस दौरान वरिष्ठ पत्रकारों और कई साथियों ने उन्हें समझाया भी कि नवभारत के खिलाफ लड़ना कितना मुश्किल है।

गौरतलब है कि 90 के दशक में मध्यप्रदेश में नवभारत का जो स्वर्णिम काल था,इन दिनों छिंदवाड़ा, ग्वालियर जैसे नए संस्करण भी खुल रहे थे,राज्यसभा के सांसद के रूप में मालिकों को राजनैतिक ताकत भी हासिल थी, फिर भी राजेंद्र अपनी धुन के पक्के आदमी थे, जो ठान लिया उसे पूरा करना ही है। अंजाम कुछ भी हो। 1990 में भोपाल श्रम न्यायालय में नवभारत प्रबंधन के खिलाफ अवैध सेवा समाप्ति का वाद दायर हुआ। अधिवक्ता स्वर्गीय शरद शुक्ला ने इस मामले को पूरी जी जान और ताकत के साथ लड़ा। भोपाल श्रम न्यायालय में 17 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार मार्च साल 2007 में लेबर कोर्ट ने मेहता के हक में अवार्ड पारित करते हुए उन्हें पिछले समस्त बकाया वेतन के साथ बहाल करने के निर्देश दिए। नवभारत प्रबंधन ने इस फैसले को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में चुनौती दी। हाइकोर्ट में ये मामला करीब 15 साल तक चला। हाल ही में 12 अक्टूबर 2022 को मामले में आदेश सुनाते हुए हाइकॉर्ट की एकलपीठ ने नवभारत की याचिका खारिज करते हुए लेबर कोर्ट भोपाल के वर्ष 2007 के आदेश को उचित माना है। 32 साल की लम्बी तपस्या के बाद मेहता को पूरा न्याय और पिछला वेतन और समस्त हितलाभ भी मिलेंगे। ये केस उन निराशावादी लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो कहते हैं कोर्ट में लड़ाई लड़ने से कुछ हासिल नहीं होता।

गौरतलब है कि जबलपुर हाइकोर्ट में भी मेहता की ओर से शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता सुजय पॉल ने मामले में पक्ष रखा। पॉल बाद में मप्र उच्च न्यायालय में ही न्यायाधीश बन गए, जिसके बाद अशोक श्रीवास्तव रूमी और स्वप्निल खरे ने मामले में पैरवी की और केस को अंजाम तक पहुंचाया। राजेन्द्र मेहता वर्तमान में स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के संयोजक हैं और पूरे प्रदेश में पत्रकार और गैर पत्रकार साथियों की मदद को तत्पर रहते हैं।

(साभार: स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन एमपी से प्राप्त जानकारी के आधार पर)

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