छत्तीसगढ़ में सत्ता के नज़ारे इन दिनों
पी सी रथ

संपादक की कलम से

छत्तीसगढ़ में पिछले एक सप्ताह में हुआ शक्तिकेन्द्रों के परिवर्तनों ने राज्य के आगे आने वाले दिनों की तस्वीर साफ़ कर दी है ऐसा प्रतीत होता है। राज्य में सत्तारूढ़ कॉंग्रेस के संगठन प्रमुख और राज्य के सत्ता प्रमुख को केंद्रीय हाई कमान ने ये संकेत दे दिया है कि बदलाव अवश्यम्भावी है और हरकोई इसकी ज़द में है।
राज्य की जनता के वोटों से ही कोई भी सरकार बननी है इसलिए जनता के हितों को ध्यान में रख कर ही सरकार की नीतियां होनी चाहिए और क्रियान्वयन दिखना चाहिए, भले ही सरकार काम भीतर के खाने में कुछ भी करे।

मंत्रिमंडलीय विभागीय फेर बदल के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि पीएमओ की तर्ज में 2018 से काम कर रहे सीएमओ की कार्य शैली में कुछ बदलाव आएगा और अधिनायकवादी प्रवृतियों पर कुछ लगाम लगेगी। ऐसा इसलिए भी क्योकि केंद्रीय एजेंसियों ईडी ,आयकर, सीबीआई के लगातार जारी प्रयासों से राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी को सत्ता समीकरण इस चुनावी वर्ष में जुटाने के लिये भरपूर सफलता भले ही नही मिल पाई लेकिन संशय का एक वातावरण बनाने में तो वे कामयाब हो ही गए हैं। जिससे राज्य के सत्ता केंद्र को भ्रष्टाचार के नाम पर कभी भी घेरा जा सकेगा जिसके कारण कर्नाटक चुनाव के परिणामों पर बहुत असर पड़ा था, आर्थिक दृष्टि से भाजपा के पास चुनावों में सबसे ज्यादा फंड होने के बाद भी उसे भ्रष्टाचार की बदनामी झेलनी पड़ी , वहां बजरंगबली के अलावा मतदाताओं में  भी कृपा नही की और हार का सामना करना पड़ा। इधर छत्तीसगढ़ में कोल , शराब, धान के बड़े मामलों को सामने लाने के बाद, केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी और कार्रवाहियों के बाद जेल दाखिल बड़े अधिकारियों को लगातार प्रयासों के बाद भी जमानत नही मिलने की स्थितियों को देखते हुए, आशंकाएं गहराने लगी थी। हाईकमान के लिये सत्ता का विकेंद्रीकरण करना जरूरी हो गया था। अब काम न होने की आम कार्यकर्ताओ की शिकायतों के लिये भी कुछ जवाब तैयार करने में मदद मिलेगी।
जिस तरह से मौजूदा मंत्री प्रेमसाय सिंह टिकाम को त्यागपत्र दिलवा कर मुख्यमंत्री के अध्यक्षता वाले योजना आयोग का ही अध्यक्ष बना कर केबिनेट का दर्जा दिया गया है।

जिस तरह वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंहदेव  को उपमुख्यमंत्री का दर्जा दिए जाने के बाद मुख्यमंत्रियों के पास ही वर्ष 2000 में राज्य के गठन के समय से रहने वाले ऊर्जा विभाग को सौंपा गया है। मोहन मरकाम को कैबिनेट मंत्री बन कर आदिम जाति जनजाति विभाग दिए जाने से प्रदेश की आदिवासी बहुल विधानसभाओं में उन्हें सीमित दिनों के कामकाज के बाद अपनी पकड़ दिखाने का अवसर मिल सकेगा।  गृहमंत्री को भी नए विभागों से नवाजा गया है उससे केंद्रीय नेतृत्व ने ये संदेश देने की स्पष्ट कोशिश की है कि उनकी निगाह में सभी 19 -20 हैं और पार्टी के लिए सबका महत्व है कोई खुद को 20 और दूसरों को 8 -10 समझने की गलती न करे।

बस्तर के युवा सांसद दीपक बैज को प्रदेश अध्यक्ष बना कर दिल्ली की अपने विश्वस्त के चुनाव के माध्यम से किये गए  परिवर्तनों से युवा वर्ग को आगे चल कर सत्ता सरकार में भागीदारी देने की मंशा भी स्पष्ट है।

दूसरी ओर भाजपा में पीएम,केंद्रीय गृह मंत्री और अन्य मंत्रियों के सघन दौरों के बावजूद उस शिद्दत से सक्रियता का संचार होता नही दिख रहा है। संगठनों में परिवर्तनों का सिलसिला अभी और चलेगा ऐसा प्रतीत होता है। पंद्रह वर्षो तक रही डॉ रमन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के बाद विपक्ष में पूरे साढ़े 4 साल बैठी भाजपा अभी भी विरोधी दल के रूप में अपना जलवा 2001-2002 की तरह नही दिखा पा रही है, हालांकि केंद्र में काबिज होने के कारण भाजपा राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में हर हाल में जीतना चाहेगी और उसके लिये नए पुराने सभी को प्रोत्साहन दे कर मोर्चों पर तैनात करने की योजना दिख रही है। बार बार के बदलाव और मीडिया के ज्यादातर संगठनों में दखल के बाद भी प्रदेश की जनता में भाजपा को ले कर पहले की तरह उत्साह दिखाई ही नही दे रहा।

पी सी रथ

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