जगरगुंडा-सिलगेर के इलाकों में आज भी चुनावी चुप्पी , लोकतंत्र पर जनता का भरोसा बढ़ाना होगा

आखिर कैसे हैं हाल नक्सल प्रभवित इलाकों में इन दिनों?

सुकमा और बीजापुर जिले के सघन नक्सल प्रभावित चिंतागुफा, जगरगुंडा, सिलगेर, बासागुड़ा दौरे से लौट कर पी सी रथ की विशेष रिपोर्ट

पी सी रथ

रायपुर, एक तरफ  देश में पांच राज्यों में आने वाले दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया का माहौल है दूसरी ओर दलों की रणनीतियाँ , दलबदल, उठापटक के चर्चे चहुंओर जारी हैं। चुनाव आयोग की ओर से सरकारी कर्मचारियों की ट्रेनिंग, सुरक्षा बलों की तैनाती और बूथों पर तैयारियों का काम जोर शोर से जारी है। ऐसे में नक्सल प्रभावित इलाकों में हमेशा की तरह नक्सलियों ने चुनावों के बहिष्कार की अपील इस बार भी की है। अब जब चुनाव में प्रत्याशी तय हो चुके हैं बस्तर और राजनांदगांव के 20 विधानसभा सीटों पर 7 नवंबर को चुनाव होने हैं, इन इलाकों में गांवों, कस्बों, शहरों में चुनावी सरगर्मी बढ़ चुकी है । ऐसे में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में से एक जगरगुंडा से सिलगेर के बीच अब तक कोई चुनावी जत्था नही पहुँचा और कल 31 अक्टूबर तक वहां बहिष्कार के पर्चे, तख्तियां, वालराइटिंग सड़क पर मौजूद थीं। लोकतंत्र के इस महायज्ञ में आम जनता को शामिल कराने की पहल शहरी क्षेत्रों में तो मजबूत है पर दूरस्थ प्रभावित क्षेत्रों में ये कहीं न कहीं कमजोर दिखाई दे रही है।
विगत 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2023 तक ये प्रवास सुकमा- बीजापुर के अंदरूनी इलाकों में  जारी रहा , इस चुनावी  माहौल का जायजा लेने जब हम सुकमा से निकले , नेशनल हाइवे पर दोरनापाल तक लगभग हर गांव , चौराहे पर कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा और कम्युनिस्ट उम्मीदवार मनीष कुंजाम के तस्वीरों वाले पोस्टर बैनर की उपस्थिति थी, कही कही पर भाजपा के झंडे और प्रत्याशी सोयम मुक़ा के बैनर भी दिखे, पर उनकी संख्या और पंडालों पर लोग बेहद कम थे।

दोरनापाल से हमें जाना था जगरगुंडा जहां आज भाजपा प्रत्याशी की छोटी सभा थी। शुरुआत चौड़ी सीमेंटेड सड़क से हुई। हमारे आगे करीब 30-40 मोटरसाइकिलों पर  सशस्त्र बल के 2-2 सिपाही चल रहे थे थोड़ी देर बाद पीछे से 3 एसयूवी गाड़ियों के काफिले में , जिसके साथ एक सरकारी वीडियो रिकार्डिंग दल भी बोलेरो वाहन में आ गया, समर्थक और प्रत्याशी काफिले में चलने लगे। दो गाड़ियों में काले शीशे के कारण अंदर के सवारों को देखना संभव नही था। जगरगुंडा तक का रास्ता  पूरे 58 किमी लंबा था जो करीब 20 किमी के बाद आधा अधूरा उबड़ खाबड़ मिलने लगा। हथियार बंद सशस्त्र बलों के मोटरसाइकिल सवारों की और टोलियां मिलने लगी, हालांकि उनकी गति कम होने लगी और चौपहिया गाड़ियों की खराब रास्तों के कारण सुरक्षा के मद्देनजर स्पीड बहुत कम देखते हुए हम आगे निकल गए।
रास्ते में हमने देखा दोरनापाल के 10 किमी के बाद के  गांवों में भाजपा प्रत्याशी के कोई पोस्टर बैनर गांवों और छोटी सड़कों पर नही थे जबकि कवासी लखमा और मनीष कुंजाम के तस्वीरों वाले लगातार मिलते जा रहे थे।

अधूरे पुलों, अधूरी सड़कों, खराब क्वालिटी के कारण बनाने के तुरंत बाद खराब सड़को को पार करते हुए हम चिंतागुफा पहुँचे। रास्ते के स्कूलों, पोटा केबिन्स, आश्रमों में बहुधा ताले ही दिखाई दिए, प्राथमिक स्वस्घ्य केंद्रों में भी चिकित्सकों की उपस्थिति नही थी नर्स एवम परिचारक स्टॉफ की संख्या भी न के बराबर दिखी। इसी तरह रोगियों की उपस्थिति भी न के बराबर थी। स्कूल यूनिफार्म में बच्चों की आमदरफ्त भी शाम तक बहुत कम जगहों पर दिखाई दी, बल्कि मवेशियों को चराने वालों में बच्चों की संख्या ज्यादा दिखाई दी।
लोगों से बातचीत करने में ज्यादातर गोंडी समझने वाले मिलते थे। हिंदी या छत्तीसगढ़ी बहुत कम लोग ठीक से समझ पाते थे।
जगरगुंडा गांव से काफी पहले सीमेंट रोड खत्म हो चुकी थी। चौड़ी गिट्टी सड़क का अस्तित्व भी करीब करीब गली में तब्दील हो चुका था। गांव में चुनावी गानों और नारों का शोर था और स्टेज सजा था मंच पर स्वागत के लिये ढेर सारे कमल के फूल रखे हुए थे और लोगों की भीड़ एकत्र होती जा रही थी। चुनावी काफिला पहुँचा अब तक उसमें सुरक्षा बलों के अलावा 40 – 50 युवाओं की टोली भी शामिल हो चुकी थी। वे मंच के पास रुकने की बजाय गांव की गलियों में जन सम्पर्क के लिये निकल गए। फोर्स के लोग भी गलियों में गश्त करने लगे, उत्सुकतावश महिलाएं बच्चे और बुजुर्ग घरों के बाहर निकल आये।

आयरन डोम की सुरक्षा या बाघा बार्डर का अहसास :-

जगरगुंडा बस्ती के आखरी छोर की ओर हम आगे बढ़े तो संकरी हो चुकी सड़क आगे से लोहे की चादरों से बने विशाल गेट से बंद नज़र आई। हमने आगे जाने की दरख्वास्त की तो गेट के अंदर जाने के बाद रजिस्टर पर नाम, पता, आने का उद्देश्य दर्ज कराया गया। बताया गया कि नक्सलियों के हमले के कारण यहां सुरक्षा बहुत सख्त है।

इस कैम्पस से अब आगे बढ़ने का सोचा तो वहां भी सड़क को घेरे हुए लोहे की शीट का बना दूसरा गेट नज़र आया।
बताया गया कि यहां पुलिस थाना और एस ए एफ का कैम्प दोनो साथ ही हैं इसीलिए मुख्यमार्ग पर स्थित इन दो गेटों से आने जाने वाले लोगों पर नियंत्रण रखते हुए  उनका विवरण दर्ज किया जाता है। रोज रात में ये गेट आवागमन हेतु पूरी तरह बंद रखा जाता है।
हमें किसी देश के बॉर्डर के गेट की तरह ये लग रहे थे। इन्हें देख कर इजरायल फिलिस्तीन के बार्डर के आयरन डोम की याद आ रही थी। इन दरवाजो के पार के गांवों में नक्सलियों का प्रभावक्षेत्र बताया गया। हालांकि हम कुछ दूर आगे गए तो मवेशी चराते कुछ ग्रामीण मिले जो टूटी फूटी हिंदी में गांवों के बारे में थोड़ा बहुत कुछ बता पाए।

इन इलाकों में जगरगुंडा तक चुनाव प्रचार में भाजपा प्रत्याशी पहली बार आये :-
रास्ते में आते समय शुरुआत के गांवों में हमें बताया गया था कि भाजपा प्रत्याशी और प्रचारकों का आज पहली बार इधर आना हो रहा है जबकि कांग्रेस और मनीष कुंजाम दो  बार आ चुके हैं।
जगरगुंडा की सभा शुरू होते ही हमने आगे के गांवों में जाने का फैसला किया । बताया गया कि गांव से एक कच्चा रास्ता सिलगेर के लिये जाता है। जगरगुंडा से निकलते ही एक कंटीले तारों का घेरा और एक खुला एंगल गेट दिखा जिसे पर करने के बाद जंगल का ऐसा शांत इलाका की कोई ग्रामीण नही। थोड़ी दूरी के बाद जंगल में गश्त करती छुपी हुई फोर्स दिखाई दी जिसने हमे रोका और आगे जाने से मना किया, हमने चुनावी जायजा लेने जाने की बात की तो उन्होंने पत्रकार होने के कारण हमें जाने दिया।

कुछ किमी के सफर के बाद चौड़ी सड़क बनाने के लिये मशीनों से मिट्टी के काम के निशान दिखे और करीब 20 -25 फ़ीट चौड़ी कच्ची सड़क में हम आगे चलने लगे। इस दरम्यान किसी भी प्रकार का कोई चुनावी पोस्टर बैनर नही दिखा।

कच्ची सड़क के किनारे  के खेतों में कटाई करते स्त्री पुरुष दिखाई दिए , जो हमें विस्मयजनक ढंग से निहार रहे थे, कि ये कौन लोग हैं और यहां कैसे आ गए ? हमने उनसे बात करने की बहुत कोशिश की किन्तु उनके गोंडी भाषी होने के कारण संवाद नही हो सका।
इस बीच सड़क के दोनो ओर के पेड़ों में चुनाव बहिष्कार के स्लोगन के साथ हस्तलिखित और प्रिंटेड पोस्टर दिखाई देते रहे। कुछ जगहों पर तख्तियों पर भी ऐसे ही नारे सड़क किनारे सजा कर रखे दिखाई दिए।


लगातार 15 -16 किमी चलने के बाद 3 -4 झोपड़ियों का एक समूह नज़र आया। एक पेंटशर्ट पहना ग्रामीण नजर आया तो संवाद की कुछ उम्मीद बढ़ी । हम सड़क से उतर कर उसके पास जा पहुँचे,  पूछने पर उसने बताया कि यही सिलगेर गांव है। थोड़ी दूरी पर नवनिर्मित डामरीकरण भी नजर आया यानी अब जा कर सुकून हुआ कि अब हम सही रास्ते पर थे, क्योकि सुबह 10 बजे से निकलने के बाद अब शाम के 4 बज चुके थे और हमे अंधेरा होने से पहले कम से कम बीजापुर तो पहुँच ही जाना था।
सिलगेर में धरने पर बैठे 5 -6 ग्रामीणों ने बताया कि इससे पहले जो ढाई वर्ष पहले का धरने का स्थल था वहां पुलिस संरक्षण में खुदाई की जा चुकी थी और अब वे इस स्थान पर बैठे हैं जहां पहले भोजन बनाया जाता था। हमसे चर्चा में धरना दे रहे युवा रामदास ने बताया कि इसी स्थान के आसपास कुछ और झोपड़ियां उन लोगों ने बना ली हैं जिससे धरने पर आने वाले लोगों को रात रुकने पर परेशानी न हो।
चुनावों को ले कर उनके बीच अभी बातचीत चल रही है। फैसला नही हुआ कि चुनावों में क्या रणनीति अपनानी है हालांकि भाजपा और कॉंग्रेस दोनों दलों से उन्हें अभी तक धोखा ही मिला है।
उन्होंने कहा कि सिलगेर में अभी चुनाव आचार संहिता का सम्मान करते हुए केवल 5 साथी धरने पर बैठे हुए हैं, चुनावों के बाद फिर हमारी संख्या बढ़ जाएगी।
इस आंदोलन को शुरू से अब तक पूरी तरह शांतिपूर्ण ढंग से संचालित किया है। आंदोलन की तीसरी वर्षगांठ का कार्यक्रम जो मई 2024 को जोरदार तरीके से होगा मूल्यांकन के बाद कुछ फैसले लिए जाएंगे।

धरना स्थल पर पुलिस गोलीबारी से मारे गए शहीदों के स्मृति में निर्मित

सिलगेर के धरना स्थल पर युवाओं से चर्चा
सिलगेर जो कि कोंटा विधानसभा का पहला- दूसरा मतदान केन्द्र बताया जाता है, में भी कोई चुनावी पोस्टर बैनर या कार्यालय नही मिला आगे बढ़ने पर सिलगेर सुरक्षा बलों की पोस्ट में फिर हमसे नाम, पता, उद्देश्य फोन नंबर इत्यादि दर्ज कराया गया। इसके बाद बासागुड़ा से बीजापुर विधानसभा का क्षेत्र शुरू होने के कारण आगे तर्रेम से हो कर आवापल्ली उसूर होते हुए बीजापुर जाने के रास्ते मे बीजापुर के विक्रम मंडावी , महेश गागड़ा सहित अन्य प्रत्याशियों के पोस्टर बैनर आदि दिखाई देते रहे।

कुल मिला कर चुनाव को लेकर सघन नक्सल प्रभावित इलाकों में जनता की भागीदारी को और बढ़ाने की जरूरत महसूस होती है जिससे लोकतंत्र के प्रति उनका विश्वास बचाया जा सके और देश के संविधान के मूल्यों को वास्तविक अर्थों में लागू किया जा सके।

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