विधान सभा चुनावों के परिणामों के इंतजार के साथ समीक्षाओं का दौर दोनो प्रमुख पार्टियों में जारी
रायपुर, 20 नवंबर 2023। सूबे में वोटिंग के बाद दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों के संगठन के स्तर पर चुनाव में अपने -अपने नेताओं , कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन की समीक्षा का सिलसिला जारी है। चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों से संभावित परिणाम के बारे में विस्तृत रिपोर्ट तो ली ही जा रही है साथ ही साथ उनके विधानसभा में बेहतर काम न करने वाले नेताओं, कार्यकर्ताओं के बारे में भी जानकारी ले कर कार्रवाही करने का सिलसिला जारी है। इस मामले में कांग्रेस संगठन ज्यादा प्रभावी और पारदर्शी नज़र आ रहा है जबकि भाजपा संभवतः आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए साइलेंट मोड में कार्रवाही के पक्ष में ज्यादा नज़र आ रही है।
इसका दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि वह राज्य में अपनी सरकार बना लेने के विचार पर उतनी कॉन्फिडेंट नही है जितना कि कांग्रेस है। समझा जा सकता है कि जिस तरह से संसाधनों और नेताओं को इस चुनाव में बड़े पैमाने पर झोंका गया था इससे दोनो राष्ट्रीय दलों के लिये ये पांच राज्यों के चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव के लिये ट्रेलर का भी काम कर रहे हैं, क्योकि यदि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भारी बहुमत से बनती है तो न केवल उसके लिये देश के सारे राज्यों में और लोकसभा चुनाव के लिये ये बेहतर स्फूर्तिदायक परिणाम होंगे बल्कि लगातार 10 वर्षो तक अपनी राज्य सरकार के माध्यम से वह अपनी फ्लैगशिप योजनाओं को लागू करके देश स्तर पर एक प्रमाणित मॉडल भी प्रस्तुत कर सकेगी। दूसरी ओर भाजपा यदि किसी तरह प्रदेश में सरकार बनाने में सफ़ल हो जाती है तो वह इसे कांग्रेस सरकार की असफलता का प्रमाण बता कर देशभर में गैरभाजपा सरकारों को बदलने तथा 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी पुनर्स्थापना के लिये सटीक मुद्दे के रूप में उपयोग करेगी।
असली नतीजे जो अब ईवीएम में कैद हैं 3 दिसंबर को ही इस बात का खुलासा करेंगे कि आखिर राज्य में सरकार चलाने का जिम्मा आखिर जनता ने किसे दिया है?
इसी के साथ-साथ दोनों दलों में मुख्यमंत्री की दौड़ भी शुरू हो जाएगी जो कि आखिरकार किसे उनके हाईकमान की मंजूरी मिलती है उसी पर खत्म होगी।
दोनों ही दलों के लिये यह आसान नही होगा क्योंकि आगामी लोकसभा चुनावों में जीत दिलाने योग्य लीडरशिप को दोनो ही दल मुख्यमंत्री बनाना चाहेंगे लेकिन साथ ही साथ यह भी जरूरी होगा कि ज्यादातर निर्वाचित विधायकों का उसे भरोसा और समर्थन हासिल हो।
देश भर में जातिगत जनगणना के लिये बनते जा रहे माहौल और घोषणा पत्रों में उसके वायदे के अनुसार कांग्रेस के लिये ओबीसी या आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की चुनोती हो सकती है दूसरी ओर भाजपा के लिये भी ये बहुत बड़ा सवाल होगा क्योंकि जैसे कि उसने इस विधानसभा चुनाव में राज्य के नेताओं को प्राथमिकता न देते हुए नरेंद्र मोदी के चेहरे और अमित शाह की रणनीतियों को प्राथमिकता दी है, उस हिसाब से भाजपा का नेतृत्व दिल्ली से थोपा जाना ही अवश्यम्भावी जान पड़ता है ऐसी स्थिति में राज्य के नेताओं का समर्थन बनाये रख पाना एक बड़ी चुनोती होना स्वाभाविक है।
कुल मिला कर छत्तीसगढ़ का राजनैतिक तापमान इन सर्दियों की शुरुआत के मौसम में दिसंबर पहले पखवाड़े में बेहद गर्म रहना तय है।
किसकी बनेगी सरकार के तुरंत बाद आने वाला यक्ष प्रश्न कौन बनेगा मुख्यमंत्री ? यही होने जा रहा है।
मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना के नतीजे भी आगामी लोकसभा चुनावों के लिये पूरे चावल की मटकी के दानों के पके होने का प्रारंभिक टेस्ट साबित होंगे, जबकि मिजोरम जैसे छोटे राज्य के स्थानीय दलों और मुद्दों के होने के कारण उतना ज्यादा असर राष्ट्रीय परिस्थितयों पर नही पड़ने की स्थिति मानी जा सकती हॉ, हालांकि पूर्वोत्तर के ही एक राज्य होने के कारण मणिपुर के मुद्दे का ठीक ढंग से समाधान कर सकने में असफलता के कारण केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के ख़िलाफ़ जनादेश जा सकता है।
मध्यप्रदेश में बदलाव के कांग्रेस के दावे पर भाजपा मजबूती से विरोध करती नही दिखाई पड़ती है, शिवराज को साइडलाइन करके केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा चुनावों में उतार देने का संदेश पार्टी कैडर को परेशान कर देने वाली कवायद दिख रही है; कमोबेश यही स्थिति राजस्थान में है जहां स्थानीय लीडरशिप को हिस्सों में बांट दिए जाने के कारण सत्ता से दूरी का अंदेशा भाजपा के लिये बना हुआ है। तेलंगाना में बीआरएस को इस बार कांग्रेस से चुनोती मिलती दिखाई जरूर दे रही है पर वो चुनोती सत्तारूढ़ होने के लायक विधायक भी जुटा पाएगी इसमें लोगों को संदेह है दूसरी ओर भाजपा की भी सत्ता से पर्याप्त दूरी बनी हुई है। यानी बदलाव की बयार कारगर नही लग रही। ओवैसी की पार्टी अपने सीमित क्षेत्र में सफल होती दिख रही है।
पी सी रथ