आज़ादी के आन्दोलन के मूल्यों को स्मरण करके ही आधुनिक भारत पर विचार किया जा सकता है

रायपुर . अध्यापक शिक्षा संस्थान , पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर तथा अज़ीम प्रेम जी फाउंडेशन, रायपुर  के संयुक्त तत्वावधान में आज सुप्रसिद्ध लेखक  तथा विचारक पुरुषोत्तम अग्रवाल भू पू प्राध्यापक जे एन यू नई दिल्ली का व्याख्यान जैविकी अध्ययन शाला में रखा गया था , खचाखच भरे हाल में धाराप्रवाह व्याख्यान में श्री अग्रवाल ने देश के इतिहास से ले कर वर्तमान हालात का चित्र श्रोताओं के समक्ष खींचा. भारत के एक राष्ट्र के रूप में साकार होने के पहले के विश्व की परिस्थितियों का उन्होंने उदाहरण सहित जिक्र किया . भारत के पुराणों से लेकर लोक कथाओं तक में उल्ल्लेखित संदर्भो का बेबाकी से जिक्र करते हुए उन्होंने तर्कपूर्ण ढंग से यहाँ की विविधता पूर्ण संस्कृति का उल्लेख किया . भारत की पहचान किसी विशेष एकांगी रूप में करने के वर्तमान प्रयासों का विरोध करते हुए उन्होंने विष्णु पुराण  का उदाहरण दिया जिसमे लिखा है कि समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण भाग में जो भूभाग में रहने वाले लोग है सभी भारतीय हैं. इस परिभाषा में कही भी धर्म , जाति या आस्था के आधार पर लोगो को अलग अलग बांटा नहीं गया है .

हिंदी हमारे देश के सभी हिन्दुओं की भाषा नहीं

इसी प्रकार हिन्दू होने या न होने को भाषा , खान पान , रहन सहन से पहचान करने के मिथ्या अभिमान की चुटीली व्यंग्यात्मक शैली में आलोचना करते हुए उन्होंने कहा की जैसे हिंदी हमारे देश के सभी हिन्दुओं की भाषा नहीं उसी प्रकार उर्दू बोलने वाले सभी मुसलमान नहीं है बहुत से मुसलमान ऐसे भी है जो हिंदी , तेलगु , मलयालम , कन्नड़ , ओडिया बोलते है , हमारी मिली जुली संस्कृति का आलम यह है की बहुत से इलाकों में ब्रम्हां भी मांस का पारंपरिक सामाजिक स्वीकृति के साथ सेवन करते हैं और बहुधा उत्तरभारत में  उन्हें शाकाहारी माना जाता है . आलू , चाय , चीनी से ले कर समोसा , जलेबी सभी बाहर s से आये है एइसे में हम किसे स्वदेशी मन कर खाएं ? किसे अपनाएं ये बहुत बड़ा पाखंड है . दरअसल हमारी मिली जुली संस्कृति का किस्सा कुछ इस तरह का हाल है कि किसी ताम्र पत्र में लिखी पाण्डुलिपि की तरह स्थिति है जिसमे पिछले पांच हजार सालों से बार बार कुछ न कुछ हर सौ बरस में लिखा जा रहा है जिससे उस पर अगला पिछला मिला कर इस तरह एकमेव या गद्दम गड्ड हो गया है की अब किसी को शुद्ध या अशुद्ध कहना मुश्किल है सभी बराबर शुद्ध है या बराबर अशुद्ध .

अकथ कहानी प्रेम की ‘के लेखक अग्रवाल जी कहते हैं कि 4 हजार साल पहले जैसी बैलगाड़ी मोहन जोदड़ो में चला करती थी आज भी भारतीय ग्रामो में वह दिख जाती है .

पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिए तमाम तरह के दुष्प्रचार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा की उनके ज्ञान , दूर दृष्टि और भारत को विकास के पथ पर ले जाने की उनकी स्पष्ट सोच का कोई मुकाबला ही नहीं .

असल में एक एक दरिद्र नारायण को जब न्याय मिलेगा तो ही भारत माता की जय होगी . महात्मा बुद्ध ने मध्यमार्गी मार्ग अपनाया था , अति हर क्षेत्र की बुरी होती है चाहे वैराग्य की क्यों न हो .

राजा का कर्तव्य होता है कि वह जनता के लिए  अभय को सुनिश्चित करे

कल्हण ने लिखा था राजा का कर्तव्य होता है कि वह जनता के लिए  अभय को सुनिश्चित करे अभय हो कर ही जनता देश का विकास कर सकती है , इसका उल्लेख पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने किया था , जो आज भी अडिग उदाहरण के रूप में सामने है .

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