रायपुर. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में उडिय़ा भाषा में शिक्षा को लेकर एक अहम सुनवाई हुई. इसमें सेवानिवृत्त प्रधान पाठक हेमशंकर पंडा ने एक याचिका दाखिल किया था, जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ में के कुछ हिस्सों में उडिय़ा भाषा में पहली से आठवीं तक की शिक्षा देने की मांग की थी.पंडा ने अपनी याचिका में कहा, कि छत्तीसगढ़ में जगदलपुर, रायपुर सीमा, रायगढ़, सरायपाली, महासमुंद में बड़ी संख्या में उडिय़ा भाषी लोग रहते हैं. इनकी आबादी 10 लाख से अधिक है. संविधान के अनुच्छेद 350 ए में लोगों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है.आबादी को देखते हुए प्राथमिक शिक्षा में उडिय़ा भाषा को भी शामिल किया जाना चाहिए. कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए सरकार से जवाब मांगा था. गुरुवार को इस मामले में कोर्ट ने सरकार की ओर से जवाब प्रस्तुत करने के बाद मामले को निराकृत कर दिया है. सरकार ने कोर्ट से कहा है, कि प्रदेश में पहली आठवीं तक की शिक्षा में उडिय़ा भाषा को भी शामिल किया जाएगा. छात्र वैक्लपिक विषय के रूप में इसका चुनाव कर सकते हैं. जल्द ही इस संबंध में प्रारूप तैयार किया जाएगा.
दूसरी ओर छत्तीसगढ़ की विभिन्न मातृभाषाओं में शिक्षा देने की मांग करने वाले आंदोलनकारी अब बेहद गुस्से में है. उनकी नाराजग़ी इस बात को लेकर है, कि संविधान में, शिक्षा का अधिकार कानून में, नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा देने की अनिवार्यता होने के बाद भी छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढिय़ों को मातृभाषा में शिक्षा नहीं दी जा रही है. कोर्ट में तो सरकार उडिय़ा भाषा को छत्तीसगढ़ में वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाने की बात कह रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ी को लेकर सरकार अभी भी दुविधा में नजऱ आती है, क्योंकि बीते 19 साल से छत्तीसगढिय़ों को खिचड़ी भाषा में शिक्षा दी जा रही है. इसमें हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी सहित अन्य मातृभाषाओं को शामिल किया गया है.
छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संयोजक नंदकिशोर शुक्ल ने कहा, कि सरकार मिश्रित भाषा में छत्तीसगढ़ी की शिक्षा देना बंद करें. जब संविधान में, आरटीई में, नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा का अधिकार है, तो फिर छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी की इतनी उपेक्षा क्यों?
हिंदी भाषा के लिए अजीम प्रेम जी फाउंडेशन में कार्यरत ऋचा रथ का कहना है कि वस्तु तः हमारे देश में भारत संघ गणराज्य की अवधारणा के अनुरूप छत्तीसगढ़ में पड़ोसी राज्यो की भाषाओं और संस्कृतियों का पर्याप्त प्रभाव सीमावर्ती जिलों में है जिसके कारण ओड़िया, तेलगु जैसी भाषाओं को प्रदेश में स्कूली शिक्षा में वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल करने पर न केवल बच्चों का भाषाज्ञान समृद्ध होगा बल्कि उन्हें अन्य राज्यों में शिक्षा तथा रोजगार के लिये भी अवसर अधिक प्राप्त होंगे.