राजू पाण्डेय ( रायगढ़ )

मिशन चंद्रयान 2 को लेकर मीडिया और राजनीतिक हलकों में जो कुछ चल रहा है वह आश्वस्त करने वाला है अथवा चिंतित बना देने वाला- यह विश्लेषण का विषय हो सकता है किंतु इतना तय है कि इस घटनाक्रम में कुछ न कुछ अतिरेकपूर्ण और असमंजसकारी तत्व अवश्य उपस्थित हैं. सोशल मीडिया पर मिशन चंद्रयान 2 की आंशिक असफलता को लेकर चलने वाला विमर्श धीरे धीरे अपशब्दों से भरी उन अमर्यादित बहसों का रूप ले रहा है जो तथाकथित राष्ट्रवादियों और तथाकथित देशद्रोहियों के मध्य आजकल अक्सर हुआ करती हैं.

पूरे देश में अपनी राष्ट्रभक्ति सिद्ध करने की एक होड़ सी मची हुई है. आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे भारतीय समाज का हर तबका इसरो के वैज्ञानिकों को हौसला देकर मानो उन पापों का प्रायश्चित कर रहा है जो उसने आजीवन किए हैं. सबका एक ही राग है- हम इसरो के वैज्ञानिकों के साथ हैं. आप हताश न हों. आप हौसला न खोएं.

इस तरह एक वैज्ञानिक प्रयोग के दौरान आई तकनीकी बाधा को एक राष्ट्रीय विपत्ति में परिवर्तित कर दिया गया है. वैज्ञानिक अविष्कारों और अन्वेषणों की सामान्य सी जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी यह जानता है कि बारम्बार प्रयोग, बारंबार असफलता और निरंतर सुधार ही निर्दिष्ट लक्ष्य तक पहुंचाते हैं. वैज्ञानिक की कार्यप्रणाली में न तो भावनाओं के लिए स्थान होता है न ही प्रदर्शनप्रियता के लिए. स्वयं को निर्लिप्त, अचर्चित और पारिवारिक- सामाजिक-राजनीतिक व्यस्तताओं से दूर रखना हर वैज्ञानिक की पहली पसंद होती है. एकांत साधना वैज्ञानिक की विवशता नहीं होती. एकांत तो वैज्ञानिक का चुना हुआ आनंद लोक होता है. जिन वैज्ञानिकों पर सांत्वना भरे शब्दों की बौछार की जा रही है उन्हें यदि एकाकी और स्वतंत्र छोड़ दिया जाए तो शायद उनका सर्वश्रेष्ठ सामने आ सकेगा. इसरो के वैज्ञानिक देश और विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं हैं. हर तकनीकी समस्या का समाधान निकालने में वे सक्षम हैं किंतु जन अपेक्षाओं के इस अप्रत्याशित दबाव का सामना करने का मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण शायद उनके पास नहीं है क्योंकि वे कोई राजनेता या सामाजिक कार्यकर्ता तो हैं नहीं जो भीड़ के मनोविज्ञान से खिलवाड़ कर सके.

जिस तरह से मिशन चंद्रयान 2 को एक मीडिया इवेंट में बदला गया वह चिंतित करने वाला है. भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का इतिहास गौरवशाली रहा है. हमारे वैज्ञानिकों ने उस समय भी दुनिया को चौंकाने वाली सफलताएं हासिल की थीं जब न तो इतना प्रो एक्टिव राजनीतिक नेतृत्व था न इतना सनसनीपसंद छिद्रान्वेषी मीडिया ही था. वैज्ञानिकों के साथ पूरे देश को जगाए रखने की कोशिश नावाजिब और गैरजरूरी है. देश के किसान वैज्ञानिकों के लिए अन्न उपजा रहे हैं. देश के मजदूर उनके लिए आवश्यक सुख सुविधाओं के निर्माण में लगे हैं. देश के शिक्षक इन वैज्ञानिकों को योग्य बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. देश की संसद, समूचा प्रशासन तंत्र, पुलिस और न्याय व्यवस्था-सब के सब- इन वैज्ञानिकों और उनके परिवार के लिए अमन चैन के वातावरण की सृष्टि कर रहे हैं. आम भारतवासी तो अब तक ईमानदारी से कर्त्तव्य निर्वहन को ही राष्ट्रभक्ति समझता आया है. उसका अपने वैज्ञानिकों पर इतना प्रबल विश्वास है कि वह उन पर अपनी अनगढ़ अपेक्षाओं का दबाव डालना नहीं चाहता. वह अपना कर्त्तव्य कर चैन की नींद सोने का आदी है. दूसरी ओर वैज्ञानिक भी एकाग्रचित्त होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सांसारिक सुख सुविधाओं और सार्वजनिक जीवन का परित्याग कर प्राण प्रण से जुटे हुए हैं. उन्हें अपने लक्ष्य का ज्ञान भी है और लक्ष्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं का बोध भी. वैज्ञानिक शब्दावली में असफलता जैसे शब्द के लिए कोई स्थान नहीं है. असफलता वैज्ञानिक के लिए प्रयोग के दौरान आने वाला एक तकनीकी अवरोध है जिसे दूर कर लक्ष्य की ओर अग्रसर होना पड़ता है.

समस्या तब उत्पन्न होती है जब मीडिया चंद्रयान 2 की लैंडिंग की इस तरह कवरेज करना प्रारंभ कर देता है, मानो यह विश्व कप क्रिकेट का फाइनल मैच हो. सोशल मीडिया पर इसरो के वैज्ञानिकों के लिए शुभकामना संदेशों की बाढ़ आ जाती है क्योंकि शुभकामना न दे पाने वालों की राष्ट्रभक्ति पर संदेह भी किया जा सकता है, इसलिए कोई भी यह अवसर खोना नहीं चाहता.

चंद्रयान 2 की लांचिंग के 15 जुलाई के प्रथम प्रयास के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद श्री हरिकोटा में मौजूद थे. किंतु तकनीकी खामी के कारण प्रक्षेपण टल गया था. 7 सितंबर को चंद्रयान 2 की लैंडिंग के दौरान प्रधानमंत्री  इसरो मुख्यालय में उपस्थित थे. संभव है कि प्रधानमंत्री जी अपने उत्साह और उत्सुकता को नियंत्रित करने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हों और उन्होंने इसरो मुख्यालय जाने का निर्णय ले लिया हो. निश्चित ही उनके मन में यह विचार भी रहा होगा कि उनकी उपस्थिति इसरो के वैज्ञानिकों को प्रेरणा देगी और वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे. यद्यपि मिशन चंद्रयान 2 जैसे अभियान इतने जटिल होते हैं कि इनकी एक एक गतिविधि और संक्रिया पर वर्षों से शोध और अन्वेषण कर इनकी ऐसी रूपरेखा बनाई जाती है जो लगभग अपरिवर्तनीय होती है. इसलिए इस प्रक्रिया में मोटीवेट होकर पर्सनल हीरोइक्स दिखाने की गुंजाइश नहीं होती जैसा युद्ध और खेल के मैदान में होता है. मीडिया द्वारा इस मिशन को प्रधानमंत्री जी की व्यक्तिगत उपलब्धि की भांति प्रचारित किए जाने की हास्यास्पद कोशिशें प्रारंभ कर दी गईं और – चांद पर मोदी मोदी-  जैसी सुर्खियां टीवी चैनलों पर दिखने लगीं. यदि मिशन कामयाब होता तो शायद इसकी सफलता को टीवी चैनलों द्वारा प्रधानमंत्री के 100 दिन के कार्यकाल की उपलब्धियों में भी शुमार किया जाता.

मीडिया ने यह तथ्य बड़ी सफाई से छिपा लिया कि नवंबर 2007 में चंद्रयान-2 प्रोजेक्ट पर एक साथ काम करने के लिए इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस के मध्य अनुबंध हुआ. सितंबर 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सरकार ने चंद्रयान-2 मिशन हेतु अपनी स्वीकृति दी. अगस्त 2009 में  इसरो तथा रॉसकॉसमॉस ने मिलकर चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार कर लिया एवं इसकी लॉन्चिंग जनवरी 2013 में तय की गई. किंतु 2013 से 2016 की कालावधि में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस द्वारा लैंडर तैयार करने में लगातार विलम्ब किए जाने की वजह से मिशन में देरी होती रही. अंततः उसने लैंडर देने में असमर्थता व्यक्त करते हुए खुद को मिशन से अलग कर लिया. इसके बाद इसरो ने स्वयं ही लैंडर विक्रम को बनाने का फैसला किया.

मीडिया की अपने चहेते महानायक को महिमामण्डित करने की कोशिशों पर तब तुषारापात हो गया,जब दुर्भाग्य से यह वैज्ञानिक प्रयोग 90-95 प्रतिशत सफलता ही प्राप्त कर सका और लैंडर विक्रम अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चांद की धरती पर उतर न पाया. विक्रम लैंडर से संपर्क टूटने के बाद प्रधानमंत्री जी कुछ हताश से लगते हुए रात लगभग 2 बजे इसरो मुख्यालय से निकल गए. बाद में शायद उन्हें यह बोध हुआ हो कि इस तरह उनके अचानक चले जाने की व्याख्या अनेक प्रकार से हो सकती है. शायद उन्हें यह भी लगा हो कि इस लैंडिंग को मेगा इवेंट में बदलने की यह कोशिश अब नकारात्मक संदेश दे सकती है. तब उन्होंने सुबह 8 बजे इसरो के वैज्ञानिकों को संबोधित करने का फैसला किया. इस कार्यक्रम के दौरान अनेक भावुक पल भी आए और नाटकीय दृश्य भी उपस्थित हुए. इसरो प्रमुख के. सिवान भावुक होकर रो पड़े और प्रधानमंत्री ने उन्हें दिलासा दी. इसरो प्रमुख का यह रुदन एक यशस्वी और दृढ़ निश्चयी वैज्ञानिक की प्रतिक्रिया थी या एक ऐसे हताश व चिंतित संस्था प्रमुख की, जो अपने अति महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री की उपस्थिति में उसकी अपेक्षाओं पर खरा न उतर सका, यह तय कर पाना कठिन है. प्रधानमंत्री जी ने इसके बाद अपने भाषण में इसरो के वैज्ञानिकों की भूरी भूरी प्रशंसा की और कहा कि पूरा देश आपके साथ है. इस तरह इसरो के वैज्ञानिकों को उस भूल के लिए क्षमादान और अभयदान की प्राप्ति हो गई जो कि उनसे हुई ही नहीं. वे तो किसी बाधा के कारण  एक वैज्ञानिक प्रयोग की शतप्रतिशत सफलता से बस 5 प्रतिशत दूर रह गए. भूल तो मीडिया से हुई जो चीख चीख कर इस वैज्ञानिक प्रयोग का राजनीतिकरण कर रहा था. भूल सोशल मीडिया के स्वयंभू राष्ट्र भक्तों से हुई जो हर वैज्ञानिक विचार और हर पवित्र संस्था को अपनी जहरीली सोच से दूषित कर देते हैं. भूल शायद कभी गलती न करने वाले महानायक से भी हुई जो इस निम्नस्तरीय प्रहसन का एक भाग बना रहा.

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