क्या  प्रधानमंत्री अपनी हताशा से उबर कर खुद को प्रेरित करने की कोशिश कर रहे थे ?

डॉ राजू पाण्डेय ( रायगढ़ )

अंतरिक्ष मिशन में तकनीकी बाधाओं को असफलता मानकर दिल से लगा लेने पर कामयाबी प्राप्त नहीं की जा सकती और इसरो के वैज्ञानिक शुरुआती दौर से ही सफलता यह मूल मंत्र जानते हैं. इसरो के कितने ही अभियान आम आदमी की भाषा में असफल हुए.10 अगस्त 1979 को प्रक्षेपित रोहिणी टेक्नोलॉजी पे लोड अपनी कक्षा में स्थिर न हो पाया. 1982 में इनसेट 1 ए का संपर्क टूट गया. 1987 में ए एस एल वी की डेवलपमेंट फ्लाइट द्वारा भेजा गया उपग्रह अपनी कक्षा तक नहीं पहुंच पाया. 1988 में प्रक्षेपित इनसेट 1 सी के बैंड ट्रांस्पोण्डर ने काम करना बंद कर दिया था. आई आर एस 1 ई को पूरे प्रयास के बावजूद अपनी कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका. यह पीएसएलवी की पहली डेवलपमेंट उड़ान थी. जून 1997 में प्रक्षेपित इनसेट 2 डी ने 4 अक्टूबर 1997 को काम करना बंद कर दिया था. 2010 में प्रक्षेपित जीएसएटी 4 अपनी कक्षा में स्थापित नहीं हो सका था. रोहिणी टेक्नोलॉजी पे लोड को ले जाने वाली एस एल वी 3 की पहली उड़ान असफल रही थी- यह भारत रत्न ए पी जे अब्दुल कलाम के कार्यकाल का वाकया है. यह सूची बड़ी लंबी है. और इस सूची से बहुत अधिक लंबी है, इन कथित असफलताओं के बाद इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा अर्जित सफलताओं की सूची. यह उस समय की बात है, जब चीखता चिल्लाता मीडिया नहीं था, सोशल मीडिया के राष्ट्रभक्त एवं उनका राष्ट्रवाद भी नहीं थे और प्रधानमंत्री जैसा कोई मोटिवेशनल स्पीकर भी नहीं था. लेकिन तब इसरो प्रमुख को मीडिया के सामने आकर उदास चेहरे और रक्षात्मक मुद्रा के साथ देश को सफाई नहीं देनी पड़ी थी.

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में वैज्ञानिकों को यह संदेश देने की कोशिश की कि जन अपेक्षाओं के दबाव और आलोचनाओं के आघातों को अवशोषित करने वाले रक्षा कवच के रूप में वे वैज्ञानिकों के साथ खड़े हैं,जबकि वस्तुस्थिति यह है कि यह दबाव प्रधानमंत्री की इसरो मुख्यालय में उपस्थिति से उन्मादित मीडिया द्वारा गढ़ा गया था अन्यथा अपने वैज्ञानिक प्रयोगों की पब्लिक स्क्रूटिनी का सामना करने की नौबत अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के सम्मुख स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद अब तक नहीं आई थी. प्रधानमंत्री के शानदार भाषण में ऐसी कोई नई बात नहीं थी जो अपना जीवन विज्ञान के प्रयोगों को समर्पित करने वाले वैज्ञानिकों को प्रेरित कर पाती. शायद इस तरह  प्रधानमंत्री अपनी हताशा से उबर कर खुद को प्रेरित करने की कोशिश कर रहे थे. या वे अपने समर्थकों की उस फौज और मीडिया के लिए बोल रहे थे जो उनसे प्रेरित होने के लालायित रहते हैं.

यदि विभिन्न देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों और चंद्रयान मिशन पर नजर डाली जाए तो यह ज्ञात होता है कि मिशन चंद्रयान 2 में उत्पन्न तकनीकी बाधा कोई असाधारण घटना नहीं है. यूएस स्पेस एजेंसी नासा की मून फैक्ट शीट के अनुसार पिछले 6 दशक में सम्पन्न कुल 109 चन्द्र अभियानों में से 61 सफल रहे और 48 असफल रहे. पूरी दुनिया में 1960 से लेकर अब तक विभिन्न अंतरिक्ष उड़ानों में 20 से अधिक अंतरिक्ष यात्री मारे जा चुके हैं. स्वयं नासा के नोआ 19, द मार्स क्लाइमेट ऑर्बिटर, डीप स्पेस 2, द मार्स पोलर लैंडर, स्पेस बेस्ड इन्फ्रारेड सिस्टम, जेनेसिस, द हबल स्पेस टेलिस्कोप, नासा हेलियोस, डार्ट स्पेस क्राफ्ट और ओसीओ सैटेलाइट जैसे महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी अभियान असफल रहे हैं. हाल के वर्षों में चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने भी असफलताओं का दौर देखा है. इसका लांग मार्च 5 हैवी लिफ़्ट रॉकेट जुलाई 2017 में दुर्घटनाग्रस्त हुआ. अप्रैल 2018 में चीन का ही प्रोटोटाइप स्पेस स्टेशन तियानगोंग 1 नियंत्रण केंद्र से संपर्क टूटने के बाद पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर नष्ट हो गया था.

एक प्रश्न गोपनीयता का भी है. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी अमेरिका और रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में ऐसा बहुत कुछ है जो गोपनीय है. नासा के विषय में कहा जाता रहा है कि उसके कुछ अभियान तो इतने गोपनीय होते हैं कि इनके वास्तविक उद्देश्य का पता बहुत कम लोगों को होता है. गोपनीयता का आलम यह रहता है कि स्पेस शटल चैलेंजर और कोलंबिया के मलमे को आम जनता को दिखाने में नासा ने वर्षों लगा दिए और 2015 में जाकर इसे सार्वजनिक प्रदर्शन हेतु रखा. नासा के शोधकर्ताओं पर उन चीनी नागरिकों के साथ काम करने पर पाबंदी है जो चीनी सरकार के किसी उपक्रम से जुड़े हैं. अमेरिकी सरकार अमेरिकन इंडस्ट्री को चीन में उपलब्ध प्रक्षेपण सुविधाओं का उपयोग करने से मना करती रही है, क्योंकि यह ईरान, सीरिया और उत्तर कोरिया जैसे देशों को तकनीकी स्थानांतरण का कारण बन सकता है. चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर भी गोपनीयता का गहन आवरण डला रहता है.

किसी भी देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक संवेदनशील मसला होता है और इसका संचालन उस देश की सामरिक, आर्थिक, व्यापारिक और संचारगत आवश्यकताओं के आधार पर होता है. अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को आम जनता और मीडिया के दबावों से दूर रखा जाता है. यह गोपनीयता के लिए भी आवश्यक होता है और उनके कार्य की प्रकृति के अनुकूल भी होता है, क्योंकि गहन अनुसंधान एकांत और एकाग्रता की मांग करते हैं. सस्ती लोकप्रियता और चुनावी राजनीति के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम का उपयोग करने की प्रवृत्ति देश के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है. इसरो के प्रति उमड़ते प्रेम के बीच  खबर तो यह भी है कि इसरो के वैज्ञानिकों के वेतन में कटौती की गई है. सरकार इसरो का निजीकरण करने की ओर अग्रसर है. चर्चा इस बात की भी है कि निजीकरण का विरोध करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिकों को इसरो में महत्वहीन भूमिकाएं दी जा रही हैं. बहरहाल यह आशा तो की ही जानी चाहिए कि इसरो का गौरव और पवित्रता बरकरार रखने में सरकार कोई कोताही नहीं बरतेगी.

डॉ राजू पाण्डेय

रायगढ़, छत्तीसगढ़

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