कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि रायपुर में प्रभाकर चौबे फाउन्डेशनके सहयोग से 2 अक्टूबर 2019 को आयोजित व्याख्यान की रपट

रायपुर . गांधी आधुनिक युग के नेता थे उनका वैचारिक केंद्र समाज, राजनीति और जनचेतना था न कि आध्यात्मिक चेतना इससे अपनी बात की शुरुआत करते हुए गांधी जी की नई तालीम और भाषा पर उनके विचार विषय पर वरिष्ठ कवि असद जैदी कहते है उनके चिंतन के स्रोत रस्किन( ऑनटोल्ड )लियो टॉल्स तोय के वे मानसपुत्र थे, अहिंसा, अपरिग्रह कद लिए वे बौद्ध, जैन, ईसाई, योरोपीय रोमांटिसिज्म का प्रभाव उन पर था, औद्योगिक क्रांति से उपजे नैराश्य से वे प्रभावित थे इसलिए उनमें थोड़ा अराजकतावादी रुझान भी शामिल है, उनमें राजसत्ता के प्रति एक संदेह हमेशा था, राज्य पर अत्यधिक निर्भरता अच्छी नही दिल से बदलाव की प्रेरणा से ही समाज मे अधिक बदलाव आ सकता है ये गांधी मानते थे, सरकार बनने की प्रक्रिया से वे अपने अंतिम वर्षो में अलग अलग चल रहे थे वे प्रतिरोधी अन्दोलन के नेता बहुत अच्छे थे किंतु अपनी गांधियन नैतिकता के कारण वे पद पर रह कर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री बन कर सत्ता का संचालन करने का अच्छा उदाहरण नही थे, अच्छे विवाद सुलझाने वाले व्यक्ति थे वे सिर्फ गरीब जनता को बल्कि सेठों को भी आध्यात्म वादी भाषण में उलझा कर समाज मे एक बराबरी लाने का प्रयास कर रहे थे. श्री असद जैदी 2 अक्टूबर 2019 को कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि रायपुर में आयोजित व्याख्यान में आधार वक्तव्य रखते हुए संबोधित कर रहे थे.

श्री असद जैदी ने आगे कहा कि गांधी जी के दर्शन में वे चाहते थे कि राज्य कमजोर रहे जनता मजबूत और आत्मनिर्भर रहे जिससे वह राज्य की नीतियों को जनता के पक्ष में बनाये रखने के लिय दबाव बना सके. सबसे निचली सीधी पर खड़े दरिद्रनारायण की चिंता उनके चिंतन का केंद्र था. 1937 में गांधी जी ने शिक्षा की अपनी सोच सामने रखी, सभी बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में हो, अनिवार्य हो, मुफ्त हो, स्त्री पुरुष के लिये समान हो, शिल्प कामकाज में प्रवीणता को शिक्षा से जोड़ा जाए जिससे तत्कालीन ग्रामीण समाज को आर्थिक उपार्जन का अवसर मिले. अंग्रेजी की मज़बूरी न रहे हिंदी तथा भारतीय भाषाओं को संपर्क, अध्ययन की भाषा बनाये, अंतराष्ट्रीय संपर्क भाषा अंग्रेजी हो सकती है. उत्तरभारत की एक भाषा सामान्य प्रचलित भाषा हिंदी हो, ऐसी जो देवनागरी तथा लिपि उर्दू में लिखी जा सके. यानि हिंदुस्तानी, आमफहम भाषा, जो तमाम अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द ले कर अपना विकास कर सके.
श्री जैदी का मानना था कि – बाद में बने देश के संविधान में लेकिन इन सब बातों का ख्याल नही रखा गया. जिससे विसंगतियां पैदा हुईं और भाषा के स्तर पर हिंदी को उसका वास्तविक स्थान सरकारी प्रयासों से आज तक नहीं मिला.

कार्यक्रम में दूसरे महत्वपूर्ण वक्ता के रूप में मौजूद वैज्ञानिक, विचारक तथा प्रसिद्ध शायर गौहर रज़ा कहते हैं भारत में जो शासक हमारे समाज के पुराने ढांचे को जो न्यायपूर्ण नही था उसे बनाये रखने का काम करते रहे, जिन्होंने पाया कि असमानता बनाये रखने के इस ढांचे ने सत्ता पक्ष की मदद की थी. जब स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत होती है तो गैर बराबरी के इस पुराने ढांचे के खिलाफ बराबरी की व्यवस्था भी बाहर की दुनिया से आया. वे गांधी, स्वतंत्रता संग्राम और आजाद भारत की कल्पना विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार रख रहे थे.
उन्होंने आगे कहा – योरोप में सभी देशों के बराबरी का अधिकार तब तक नही था. यू. के. में तक 1920 में महिलाओं को वोट का अधिकार मिला. जबकि हमको आज़ादी मिलते ही अपना वोट देने की बराबरी भारत मे मिल गयी. आज़ादी के पहले की बहसों में मुसलमान कह रहे थे कि अंग्रेजो ने सत्ता हमसे छीनी थी हमको वापस करके जाएँ , जबकि हिन्दू चाहते थे 1500 साल पहले छीनी गयी सत्ता उन्हें वापस मिले. ऐसी ताकतें भी थी जो इंसान को इंसान के बराबर नही मानती थी, उनका दबाव सदियों पुरानी व्यवस्था को फिर से कायम करने के लिए था.
भारत मे जबरदस्त विविधता थी, वे कहते थे पूरी दुनिया में शासन करने का दावा करने वाले अंग्रेजी शासन का सूरज नही डूबता था. गोरे हमारी दुनिया को सभ्य करने का दावा करके आये थे, ऐसे समय मे इनके खिलाफ आंदोलन खड़ा करने के लिये, सबको आज़ादी के आंदोलन से जोड़ने के लिए हम धर्म, जाति, खानपान और भाषा की पहचान के आधार पर आंदोलन खड़ा नही कर सकते थे, ये बात गांधी नेहरू और पटेल को स्पष्ट पता थी इसीलिए देश के सेक्युलर पहचान से एकजुटता बढ़ाई जाएगी, जिससे आज़ादी के आंदोलन को मजबूत किया जा सकेगा इस पर इन सबकी सहमति थी.
गौहर रज़ा कहते हैं – मुझे लगता है कि नेहरू और गांधी का कद, इस पिछली सदी के दौरान सबसे ज्यादा बड़ा है, हालांकि मैं अपना आदर्श भगतसिंह को मानता हूं. आज़ादी के बाद हमारा संविधान बनता है लिखित है कि हम सब बराबर हैं और इस पर 600 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर भी होते हैं, किंतु वास्तव में इनमें से बहुत ही कम सांसद वास्तव में इसमें यकीन रखते थे, ऐसा बाद की घटनाओं से प्रतीत होता है.
मुस्लिम कट्टरपंथी, गांधी जी को हिन्दू परस्त और हिन्दू कट्टरपंथी उन्हें मुस्लिम परस्त मानकर तब पाकिस्तान को 70 करोड़ देने से ले कर आज तक मुसलमानों का ज्यादा ख्याल रखने वाला कहते आये ,वे आज तक आलोचना के पात्र बनाये जा रहे हैं.
श्री रज़ा ने आगे कहा – पहले देश ख्वाबों खयालों में पैदा होते हैं फिर उनको बनाने के लिए गांधी, भगतसिंह, राजगुरु, नेहरू, पटेल जैसे लोग पैदा होते हैं फिर ये वास्तविक रूप से साकार होते हैं. क्या ये सच है? यदि श्रोता भी इसे सच मानते हैं तो और यदि हाँ तो देश के बन जाने के बाद उसके टूटने में भी यही प्रक्रिया होगी?
यानी इसी तरह जब देश के सपने टूटते हैं तो देश वास्तविक हालातों में भी टूट जाए तो ?
तो ये देखा जाए कि सोवियत संघ जैसे दुनिया में दूसरे नंबर का ताकतवर देश का हाल हुआ वैसा ही हमारे देश मे भी हो सकता है. आज भारत, मिश्र, ब्राजील, इस्राइल, अमेरिका जैसे देशों में ऐसे आत्ममुग्ध नेता सत्तारूढ़ है जो पूरी दुनिया मे कारपोरेट ताकतों के इशारे पर जनता पर हावी हैं, दुबारा गुलामी के चंगुल में हम फंसते जा रहे हैं जिसका आपको- हमको अंदाजा नही है.
वरिष्ठ पत्रकार ललित सुरजन ने कहा कि आपकी चेतना को बोथरा किया जा रहा है, आप गांधी नेहरू, भगतसिंह की किताबें पढ़िए, आपस मे बाते कीजिये, आज की स्थितियों, चुनौतियों को समझिए, आपकी आत्मा के ऊपर एक पहरा बिठा दिया गया है, हम इतने बड़े झूठ के शिकार बना दिये गए हैं, जिसमे मुख्यधारा का मीडिया लगातार हमें एकतरफा सामग्री परोस कर भ्रमित करता रहता है. आगे श्री सुरजन ने कहा आज के युवा वर्ग को इन स्थितियों को समझना है आज ऐसे लोग हावी हैं जो गांधी जी।की आलोचना करते रहते है और जयंती के अवसर पर गांधी जी के रास्ते पर चलने का आह्वान करते हैं शाखा में जाने वाले ऐसे लोगो से गोडसे मुर्दाबाद का नारा लगाने को कहिए ऐसा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी ने कहा था मैं उससे सहमत हूं, वे हर मुद्दे पर गांधी जी को सिमित करके केवल स्वच्छता अभियान में उनको रोल माडल बनाना चाहते हैं.
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि रायपुर के कुलपति तथा कार्यक्रम अध्यक्ष श्री चुरेन्द्र कहते है कि गांधी जी के विचारों को उनके दर्शन को अपने जीवन में उतारें, आज के मौके पर हम ये संकल्प लें कि हम अपने देश को जल्द से जल्द विकसित राष्ट्र के रूप में शामिल करावें. आज आप सब से प्रार्थना है हम अपने राष्ट्र की आत्मा संविधान को माने, हर घर में ये संविधान की किताब जरूर रहे. देश में आज़ादी के बाद भौतिक आज़ादी तो प्राप्त हुआ है आर्थिक और सामाजिक आज़ादी प्राप्त करना बाक़ी है , असमानता को हर स्तर पर दूर करना होगा.जब भी मौका मिले स्वाध्याय करते रहें, अध्ययन करते रहें. अंत में वि वि के कुलसचिव ने आभार प्रदर्शन किया. व्याख्यान में विवि ने छात्र छात्राओं , शिक्षकों के अलावा रायपुर के पत्रकार , बुद्धिजीवी, रचनाकार भारी संख्या में उपस्थित थे.

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