देश में असहमति की आवाजों को सत्ता की ताकत से खामोश करना लोकतंत्र के लिए घातक

कोर्ट ने अगली तारीख 17 सितम्बर तक पेशी बढ़ा दी .

नईदिल्ली . सुप्रीम कोर्ट ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले के संबंध में गिरफ्तार किए गए पांच कार्यकर्ताओं की घरों में नजरबंदी की अवधि को १२ सितम्बर की सुनवाई में बुधवार को 17 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी.चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ को सूचित किया गया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी को बहस करनी थी परंतु वह एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित होने वाले थे अतः कोर्ट ने अगली तारीख 17 सितम्बर तक पेशी बढ़ा दी .

   संयोग या षड़यंत्र  – राफेल घोटाले पर 22 अगस्त को गौतम नवलखा एक साक्षात्कार ’ न्यूज क्लिक ,न्यूज पोर्टल के लिए रक्षा अनुसन्धान वैज्ञानिक डी रघुनन्दन से लेते हैं, प्रारंभ में जिक्र भी करते हैं की सरकार और अम्बानी समूह का दबाव बहुत है नोटिस भी मिली है की राफेल इशु पर कोई रिपोर्टिंग न करें लेकिन देश के संसाधनों की खुली लूट का सवाल है इसलिए जागरूक नागरिक होने के नाते वे सवाल तो उठाएंगे ही और उनके सहित  28 अगस्त 2018 को देश के 5 अलग अलग हिस्सों से 5 वरिष्ठ नागरिकों को पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है . इस बेबुनियाद गिरफ़्तारी  पर देश के पत्रकारों , लेखकों और बुद्धिजीवी संगठनो द्वारा तीखा विरोध किया गया . प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर , एवं   रामचंद्र गुहा   द्वारा इस मामले में 28  अगस्त को ही माननीय सुप्रीम कोर्ट में इस गिरफ़्तारी को न्यायोचित न मानते हुए याचिका दायर की गयी जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 29 अगस्त को सुनवाई शाम 4 बजे करने का आश्वासन दिया गया था , कोर्ट में वरिष्ट अधिवक्तागन अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण ,  द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष सारा प्रकरण रखा गया, बहस में महाराष्ट्र सरकार द्वारा समुचित सबूत प्रस्तुत न किये जाने पर नाराज कोर्ट ने सभी 5 नागरिकों को उनके घर पर 12 सितम्बर अगली पेशी तक  नज़रबंद रखने का आदेश दिया था .

पत्रकार एवं  मानवाधिकार सामाजिक कार्यकर्त्ता गौतम नवलखा  ने इस घटना पर कहा

यह पूरा मामला इस कायर और बदले की मंशा से काम करने वाली सरकार द्वारा राजनीतिक असहमति के खिलाफ़ की गई राजनीतिक साजिश है । यह सरकार भीमा कोरेगांव के असली दोषियों को बचाने के लिए जी जान लगा रही है। इस तरह से यह सरकार अपने उन घोटालों और नाकामियों की ओर से ध्‍यान हटाने का काम कर रही है, जो कश्‍मीर से लेकर केरल तक फैली चुकी है। एक राजनीतिक मुकदमे को राजनीतिक तरीके से ही लड़ा जाना चाहिए। मैं इस अवसर को सलाम करता हूं। मुझे कुछ नहीं करना है। अपने राजनीतिक मालिकों के हुकुम पर काम कर रही महाराष्‍ट्र पुलिस की जिम्मेदारी है कि वह मेरे खिलाफ और मेरे साथ गिरफ्तार हुए साथियों के खिलाफ अपना पक्ष साबित करे। हमने पीयूडीआर में रहते हुए बीते चालीस साल के दौरान साथ में  निडरता से   लोकतांत्रिक हक और हुकूक की लड़ाई लड़ी है और मैं, पीयूडीआर का हिस्‍सा होने के नाते ऐसे कई मुकदमों में शामिल रह चुका हूँ। अब मैं खुद किनारे खड़े रह कर एक ऐसे ही राजनीतिक मुकदमे का गवाह बनने जा रहा हूं।

तू ज़िंदा है तो ज़िदगी की जीत पर यक़ीन कर
अगर कहीं है स्‍वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर
ये ग़म के और चार दिन सितम के और चार दिन
ये दिन भी जाएंगे गुज़र
गुज़र गए हज़ार दिन.

 

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