एक्टर प्रकाश राज ने मुख्यधारा के मीडिया पर जमकर हमला बोला

कन्वेंशन ने लिया पत्रकारों पर होने वाले हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने का संकल्प

नईदिल्ली. पत्रकारों के खिलाफ होने वाले हमले के विषय पर दो दिनों का सम्मेलन दिल्ली में  हुआ.जहां देश के कोने – कोने से आये बहुत सारे जुझारू पत्रकारों ने अपनी बात रखी.देश के जाने माने पत्रकार रवीश कुमार ने कहा कि आज बड़े बड़े चैनलों के एंकर और चैनल दोनों किसी गुंडे की जुबान में बात कर रहे हैं. जब ऐसा हो रहा है तो इनको सुधारने वाले कहां से आएंगे.एडिटर्स गिल्ड और ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन जैसी संस्थाओं से कुछ नहीं होने वाला.यह लोग अधिक से अधिक लिख सकते हैं और कुछ नहीं कर सकते. अब राजनीति पर बात करने की जगह राजनीति पर प्रोपगंडा ठेलने का काम किया जाता है. सभी पत्रकारों को डराने के लिए बड़े नाम वाले पत्रकारों को परेशान किया जाता है.एक पत्रकार के निकलने से दस पत्रकार डर जाते हैं.इस समय पत्रकारों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बहुत अधिक बढ़ गया है .इस दबाव से निकलने का कोई फॉर्मूला नहीं है.इस दबाव से रोजना लड़ना पड़ता है.हमारा पिछला अनुभव भी किसी काम नहीं आता है. “ट्रोल, खतरा और धमकियों” के सत्र में एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने बताया कि कैसे मीडिया को चुप कराने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं।

पत्रकार नेहा दीक्षित ने हाल में यूपी में एनकाउंटर पर की गयी अपनी स्टोरी का हवाला देते हुए कहा कि सूबे में मुसलमानों की हालत बहुत बुरी है। और उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। पत्रकारों पर हो रहे हमलों के खिलाफ राजधानी दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय ये कन्वेंशन हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने के संकल्प के साथ समाप्त हो गया. कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित इस कन्वेंशन के उद्घाटन सत्र में एक्टर प्रकाश राज ने मुख्यधारा के मीडिया पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि “कैसे मीडिया हाउसों को खरीद लिया गया है और कैसे लोगों का ब्रेन वाश कर दिया गया है और बड़े स्तर पर फेक और पेड न्यूज को फैलाया जा रहा है.”

इसके साथ ही उन्होंने मौजूदा सरकार को भी निशाने पर लिया. शुरुआत ही उन्होंने मौत की एक ट्रेन के उदाहरण के साथ किया. जिसमें उन्होंने जगह-जगह हो रहे इस तरह के हमलों और हत्याओं को उसके प्लेटफार्म के तौर पर चिन्हित किया. इस सिलसिले में उन्होंने बारी-बारी से एमएम कुलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर से लेकर गौरी लंकेश तक का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि लंकेश उनकी व्यक्तिगत मित्र थीं, उनका जाना उन्हें खल गया.

बीजेपी पर सीधा हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने केंद्र में शासन कर रही पार्टी को कैंसर करार दिया था और उसे किसी भी तरह से राज्य में नहीं जीतने देने की अपील की थी. अपने साथ बरते जा रहे रवैये पर उन्होंने कहा कि “बहुत सारे लोग हैं जो मेरे खिलाफ लिखते और बोलते हैं और बहुत सारे हैं जो चुप रहते हैं और मेरी प्रेस ब्रीफिंग को भी रिपोर्ट नहीं करते.”

छत्तीसगढ़ से आये वरिष्ठ पत्रकार और देशबंधु के एडिटर-इन-चीफ ललित सुरजन ने कहा कि पत्रकारों को एक होने की जरूरत है. पहले पत्रकारों में एकता होती थी और उससे सरकार भी डरी रहती थी. लेकिन अब नये मीडिया संगठनों द्वारा जो कुछ किया जा रहा है उससे लोगों का मीडिया पर भरोसा कम होता जा रहा है.कन्वेंशन में देशबंधु के संपादक ने कई सुझाव भी दिए. जिसमें उन्होंने मीडिया के रेवेन्यू पक्ष पर ज्यादा ध्यान देने की बात कही. लंबे समय तक छत्तीसगढ़ में अपनी सेवा दे चुके आवेश तिवारी ने पत्रकारों को हमेशा विपरीत परिस्थितियों में काम करने के लिए तैयार रहने को कहा , इस बात पर चिंता जाहिर की छ्त्तीसगढ़ जैसे राज्यो की महत्वपूर्ण खबरें नेशनल मीडिया में उस तरह नही आ पाती जैसे नक्सल वारदात या मुठभेड़ की खबरें आती हैं. भिलाई और रायपुर क्षेत्र में पिछले दो महीने में 150 से अधिक मौतें डेंगू से हुई हैं और राज्य का स्वास्थ्यमंत्री और मुख्यसचिव 40 -50 दिनों तक वहां नही जाता है जो सिर्फ 30 किमी की दूरी पर स्थित है। नक्सल समस्या के बहाने भ्रस्टाचार का सघन तंत्र चल रहा है।

इस मौके पर कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) की तरफ से कुणाल मजूमदार ने देश और दुनिया में होने वाले पत्रकारों पर हमले और उनकी हत्याओं का पूरा ब्यौरा दिया. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ (छुरा )के उमेश राजपूत की हत्या की गयी और वर्षों की सी बी आई जाँच के बाद भी अब तक कुछ नहीं हुआ जबकि किन लोगों के खिलाफ़ वे लगातार लिख रहे थे सब जानते हैं यह भी  कि सबसे ज्यादा हमलों के शिकार पत्रकार हो रहे हैं। और इसमें बहुत ज्यादा पत्रकार मर रहे हैं। ये मौतें युद्ध में नहीं बल्कि सामान्य राजनीतिक रिपोर्टिंग के दौरान हो रही हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में मारे गए 88 फीसदी पत्रकार स्थानीय थे। उनका कहना था कि राजनीति की रिपोर्टिंग युद्ध और मानवाधिकारों पर हमले से भी ज्यादा खतरनाक हो गयी है। इस सिलसिले में उन्होंने कश्मीर में राजिंग कश्मीर के संपादक पर हुए हमले और उनकी मौत का भी उदाहरण दिया।

कार्यक्रम में  ड्यूटी के दौरान मारे गए पत्रकारों के परिजनों ने अभी अपनी-अपनी आपबीती सुनायी। उत्तराखंड में मारे गए देवेंद्र पटवाल की मां ने कहा कि “मेरा बेटा लगातार कह रहा था कि ‘मैं खतरे में हूं’।”

राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन ने भी इसी तरह की कहानी सुनायी। उन्होंने कहा कि रंजन पर इसके पहले दो बार आरजेडी नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन के आदमियों ने हमला किया था। गौरतलब है कि रंजन की हत्या के मामले में शहाबुद्दीन मुख्य आरोपी हैं। और उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। हालांकि इसमें शहाबुद्दीन को जमानत मिल चुकी है। और आशा रंजन का कहना था कि वो उसको रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगी।

जाने माने पत्रकार निखिल वागले ने इस मौके पर पीएम मोदी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि मोदी देश की राजनीति में जहर घोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों और स्थानीय स्तर पर काम करने वाले पत्रकार ज्यादा खतरे में हैं। उन्होंने कहा कि इस दौर में मानहानि को पत्रकारों को प्रताड़ित करने के एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि इससे घबराने की जरूरत नहीं है। अगर वो एक पत्रकार को मारते हैं तो दूसरा पैदा हो जाता है।

इस मौके पर कमेटी अगेंस्ट एसॉल्ट आन जर्नलिस्ट्स (सीएएजे) ने जनवरी 2010 से जून 2018 के बीच देश में मारे गए पत्रकारों की सूची जारी की। कमेटी का कहना था कि इस दौर में जबकि मुख्य धारा का मीडिया वाचडाग की जगह सरकार का पिछलग्गू हो गया है ऐसी स्थिति में इस तरह की पहल की जरूरत पड़ी।

कई सत्रों में चले इस कार्यक्रम की अलग-अलग लोगों ने अध्यक्षता की। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार और तीसरी दुनिया पत्रिका के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने की जबकि आखिरी सत्र की अध्यक्षता इंसाफ के अनिल चौधरी ने किया।

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