अब 18 दिसंबर से राष्ट्रपति शासन में रहेगा काश्मीर

जम्मू-कश्मीर विस भंग करने का मामला-राजभवन के फैक्स मशीन के ख़राब होने से दावा राज्यपाल तक नहीं पहुंचा था

नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करने के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी.राज्य में पी डी पी भाजपा गठबंधन की सरकार करीब 6 महीने पहले दोनों पार्टियों में गतिरोध के कारण गिर चुकी थी और राज्यपाल शासन लगा हुआ था किन्तु विधानसभा भंग नहीं की गयी थी.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा, हम दखल नहीं देना चाहते (राज्यपाल के फैसले में)। पीठ भाजपा नेता गगन भगत की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. श्री भगत भंग विधानसभा के सदस्य थे. राज्यपाल ने नाटकीय घटनाक्रम में, निलंबित जम्मू-कश्मीर विधानसभा को 21 नवंबर को आनन-फानन में भंग कर दिया था. इसके कुछ ही घंटे पहले पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने प्रतिद्वंद्वी नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया था. इसके बाद दो सदस्यीय पीपल्स कॉन्फ्रेंस ने भाजपा और अन्य दलों के 18 विधायकों के समर्थन के दम पर सरकार बनाने दावा पेश किया था. पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को पत्र भेज कहा था कि उनकी पार्टी के 29 विधायक हैं और उसे नेशनल कॉन्फ्रेंस के 15 विधायकों तथा कांग्रेस के 12 विधायकों का समर्थन प्राप्त है. राज्यपाल द्वारा विधान सभा भंग करने निर्णय की घोषणा राज भवन की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में की गयी थी. छह महीने का राज्यपाल शासन 18 दिसंबर को समाप्त हो रहा है. इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा. विधानसभा का कार्यकाल अक्टूबर 2020 तक है. महबूबा मुफ्ती नीत पीडीपी और भाजपा की गठबंधन सरकार के पतन के बाद 19 जून को राज्य में 6 महीने के लिए राज्यपाल शासन लगा दिया गया था.अब चूँकि 6 महीने की अवधि समाप्त होने वाली थी तो राज्य के राजनैतिक दलों ने उसी तरह मिलजुल कर सरकार बनाने की पहल की थी, जैसे विधानसभा चुनाव के बाद पी डी पी और भाजपा ने विपरीत विचारधारा की पार्टियों के बाद भी मिल कर सरकार बनाई और चलाई भी थी .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here