सुन्दर दृश्यावली से भरपूर  , पर्यटन की असीम संभावना से भरा अछूता वन क्षेत्र

बीजापुर.  ( रंजन दास ) सीमांध्र की ओर बहने वाली गोदावरी नदी पर छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती हिस्से में स्वतंत्रता से पूर्व सिंचाई व पन विद्युत परियोजना के उद्देश्य को लेकर वृहद बांध परियोजना की आधारशिला रखी गई थी. बांध की नींव उस दौर में रखी गई थी, जब बस्तर रियासत और हैदराबाद में निजामों की रियासत हुआ करती थी. भोपालपट्नम से तकरीबन 27 किमी दूर दूधेड़ा गांव के समीप गोदावरी नदी पर निजाम रियासत में अधूरा रहा बांध का स्ट्रक्चर इंचमपल्ली बांध परियोजना के नाम से जाना जाता है, जोकि बीजापुर जिले के सीमावर्ती गांव दूधेड़ा के नजदीक स्थित है. बांध निर्माण के खिलाफ पर्यावरण मामले  में कार्रवाई आगे बढ़नी चाहिए, इसके अलावा बायोडायवर्सिटी तथा छठी अनुसूची के तहत् बगैर ग्राम सभा के एनओसी की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना संभव नहीं है, ऐसे में स्थानीय प्रशासन को यह एनओसी प्रदान करने का अधिकार कतई नहीं है. फोन पर चर्चा में पूर्व वन मंत्री श्री गागड़ा कहना था कि बांध के बन जाने से छत्तीसगढ़ को कोई लाभ नहीं होगा, इसके उलट वहां बीजापुर जिले के दर्जनों सीमावर्ती गांव डुबान क्षेत्र में आ जाएंगे, पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, टाइगर प्रोजेक्ट भी इससे अछूता नहीं रहेगा. हालांकि तेलंगाना सरकार की तरफ से भेजी गई सर्वेयर टीम ने स्थानीय प्रशासन से पुर्ननिर्माण के लिए इजाजत मांगी थी मगर यह प्रक्रिया नियमाविरूद्ध होने से उन्होंने इस पर आपत्ति उठाते नियमानुसार प्रक्रिया बढ़ाने की मांग रखी थी. बहरहाल एनओसी ना मिलने के बाद से दो राज्यों के बीच यह परियोजना विवादास्पद स्थितियों में अटकी पड़ी हुई है.

छत्तीसगढ़ की सीमा में शामिल इंचमपल्ली परियोजना  बीजापुर जिला मुख्यालय से लगभग 77 किमी दूर भोपालपट्नम ब्लाक के अंतर्गत दूधेड़ा के नजदीक है.  जिसकी आधार शिला 1806 में रखी गई थी. यहां से होकर गोदावरी नदी तेलंगाना और इसके आगे आंध्र प्रदेश की तरफ बढ़ जाती है. नैसर्गिक सुंदरता से परिपूरित इस जगह की कई अन्य विषेशताएं भी हैं. प्राणी विषेशज्ञों की मानें तो बस्तर में पाई जाने वाली दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियों के अलावा मगरमच्छों की यह नैसर्गिक शरण स्थली भी है.

इंचपल्ली में आजादी से पहले जब बांध का निर्माण कराया जा रहा था, उस दौरान प्लेग और महामारी फैलने से सैकड़ों आदिवासियों की मौतों की बात स्थानीय लोग स्वीकारते हैं. चूंकि सिलसिलेवार मौतों के बाद ही बांध का काम रूकवा दिया गया था। स्थानीय ग्रामीणों में जहन में मौतों को लेकर दैवीय प्रकोप का भ्रम आज भी बरकरार है। इस डर ग्रामीण रात में बांध के नजदीक ठहरने से डरते है और तो और दिन के वक्त भी बांध के आस-पास जाने से लोग कतराते हैं.

सिंचाई विशेषज्ञों के अनुसार, इंचमपल्ली परियोजना की कल्पना 1806 में करीमनगर जिले के महादेवपुर मंडल में निजाम शासकों द्वारा की गई थी. निजाम शासकों ने नदी पर वृहद बांध परियोजना का निर्माण करने का निर्णय लिया था. जिसके बाद निजाम षासकों के अनुरोध पर फ्रांसीसी इंजीनयर ने परियोजना को मूर्त रूप देने काम षुरू करवाया था. हालांकि 1869 में परियोजना से सटे इलाकों में प्लेग तथा महामारी का भयंकर प्रकोप फैला था.. परियोजना पर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और सीमांध्र में एकाधिकार को लेकर लम्बे समय से विवाद गहराया रहा. जानकारों की मानें तो इंचमपल्ली बांध परियोजना को पुनर्जीवित करने की आंध्र सरकार की तरफ से सबसे पहले पहल हुई थी. चूंकि छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जिस हिस्से में यह परियोजना प्रस्तावित है, वह स्थान इंद्रावती टाइगर प्रोजेक्ट के दायरे में आता है. ऐसे में बाघ परियोजना के अलावा, राजकीय पशु वनभैंसे, सघन वन समेत दर्जनों गांव डुबान क्षेत्र में आने की आशंका से इसके पुर्ननिर्माण पर ऐतराज जताया गया था. हालांकि सिंचाई विषेशज्ञों का कहना है कि बांध पर वृहद पन विद्युत परियोजना संभव है, लेकिन इसका सीधा लाभ छत्तीसगढ़ के बजाए सीमांध्र व तेलंगाना को ही होगा.

इंचमपल्ली परियोजना एक ऐहितहासिक धरोहर भी है, इसके अलावा यहां गोदावदी नदी तथा पहाड़, जंगल की मौजूदगी से इस स्थल की नैसर्गिक खूबसूरती और भी बढ़ जाती है, बावजूद प्रचार-प्रसार का अभाव और नक्सली भय से इंचमपल्ली दर्षनीय स्थल होकर भी सैलानियों की नजरों से अब तक ओझल है.दूधेड़ा, चंदूर, भद्रकाली, ताड़लागुड़ा, भोपालपट्नम आदि समीप क्षेत्रों से जानकार लोग ही यदाकदा पिकनिक के उद्देश्य से यहां पहुंचते हैं.हालांकि स्थल की नैसर्गिक विशेषताओं के चलते यहां पर्यटन की ढेरों संभावनाएं भी मौजूद हैं, जिस पर नक्सली भय का ग्रहण लगा हुआ है.

परियोजना को लेकर अंतरराज्यीय विवाद, ग्रामीणों में तरह-तरह की भ्रांतियों से परे प्रकृति प्रेमी इंचमपल्ली की खूबसूरती को सैलानियों के सामने लाने स्थल को टूरिज्म स्पॉट के रूप में विकसित करने की मांग कर रहे हैं.दूधेड़ा गांव के जागरूक युवाओं ने हालही में क्षेत्रीय विधायक विक्रम मंडावी से मूलभूत मांगों को लेकर मुलाकात करने की बात कही है. जिनमें चंदूर से दूधड़ा होकर इंचमपल्ली तक पक्की सड़क का निर्माण, सैलानियों के विश्राम के लिए शेड, पैगोड़े तथा स्थान की विशेषता बतलाने साइन बोर्ड की आवश्यकता पर जोर दिया गया है.

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