कभी तुषार ,वेमुला , लंकेश ,अमोल जैसी निगाह से भी भारत जोड़ो को देखिये
आलेख-अपूर्व गर्ग

निंदा और आलोचना में फर्क है .

मौजूदा प्रसंग देखें तो भारत जोड़ो यात्रा की जोरदार सराहना के साथ निंदा और आलोचना दोनों जारी है .

जिन्हे घबराहट हो रही वो निंदा में व्यस्त हैं और जो इस यात्रा को अपने विचारों के अनुसार देखना चाहते हैं वो लगातार आलोचना कर रहे .

(फोटो सोशल मीडिया से)

जिनका मकसद तोड़ना है उनसे कोई बात नहीं की जा सकती ,उनकी घबराहट समझी जा सकती है .पर आलोचकों के सवालों का जवाब दिया जाना चाहिए .

राहुल गाँधी के लिए कांग्रेस से ज़्यादा दूसरों का लगातार सुझाव था ‘सड़क की लड़ाई लड़ना चाहिए ‘.

जब वो साढ़े तीन हज़ार किलोमीटर की सड़क यात्रा पर उतर कर सिर्फ बीजेपी सरकार पर हमले कर रहे तो भी
संतुष्टि नहीं इसे ‘वोट जोड़ो’ कहा जा रहा .कुछ लोग आलोचना कर ये कयास लगा रहे ये सामाजिक यात्रा न बन जाए !!

यात्रा कांग्रेस की है .साढ़े तीन हज़ार किलोमीटर चलना है पैदल .ज़ाहिर है उनकी पार्टी पहले ये देखेगी कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक ये दुर्गम सफर कैसे तय किया जाए और समय पर पूरा किया जाए .
ज़ाहिर है कांग्रेस समुद्र मंथन के बाद ही रोड मैप बना पायी होगी .

ज़रा सोचिये , अगर ये यात्रा सीधी रेखा में न जाकर पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर बंगाल ,बिहार , उड़ीसा ,पूरा दक्षिण -पश्चिम भारत तय करे तो साल भर से ज़्यादा न जाने कहाँ -कहाँ भटकती रहती . कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है ,ऐसे में हर प्रदेश की अपेक्षा से चलती तो ये यात्रा कब मंज़िल पर पहुँचती ?

दूसरी महत्वपूर्ण बात आप राहुल की सड़क यात्रा पर बहुत से सवाल उठा रहे हैं .उनकी पॉलिटिक्स पर सवाल दागे गए …अच्छी बात है .लोकतंत्र की यही सुंदरता है बहुत सवाल हों.पर सवाल बस कुंठित होकर न पूछे जाएँ तो बेहतर !

सनद रहे राजीव ऐसे ही दक्षिण की एक सड़क पर लोगों से मिलते शहीद हुए .

छत्तीसगढ़ की कांग्रेस की पूरी लीडरशिप ऐसी ही एक जनयात्रा में गोलियों से छलनी-छलनी कर दी गयी थी .

यात्राओं से ज़ख़्मी कांग्रेस इसके बावजूद कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ने निकलती है तो कभी -कभी
तुषार गाँधी ,राधिका वेमुला ,इंदिरा लंकेश , अमोल पालेकर जैसे भी बन जाना चाहिए .

राहुल के पूरे बयान सिर्फ बीजेपी सरकार के खिलाफ हैं.वो पहले भी बोलते रहे पर अब भारत जोड़ो आंदोलन से खासकर सोशल मीडिया में जिस वेग से प्रसारित हो रहे और चर्चित हुए वो उल्लेखनीय है.

महाराष्ट्र में, शिव सेना का स्टैंड जानते हुए भी सावरकर पर राहुल ने जो कहा सावरकर के पोते को सीधे कोर्ट जाना पड़ा …तिलमिलाहट देखिये …जबकि सावरकर पर बहस पिछले 8 सालों से जोरो से है पर यही बात जब
भारत जोड़ो यात्रा के प्लेटफॉर्म से कही गयी तो असर देखिये …

एक डर जो देश में फैलाया गया उसके खिलाफ ‘डरो मत ‘ नारा कितना पॉपुलर हो रहा .सिर्फ कांग्रेस मुक्त हमले की शिकार पार्टी ही नहीं देश के हर तबके में ये सन्देश कैसे जा रहा ,ज़रा सोचिये .

जिन्हे इस यात्रा में खामी ही खामी नज़र आरही वो बड़ी लकीर क्यों नहीं खींचते ?

उन्हें निकलना चाहिए 35 हज़ार किलोमीटर की यात्रा पर .इस स्वस्थ प्रतियोगिता का सीधा फायदा
देश को होगा . देश और मज़बूती से जुड़ेगा ,लड़ेगा और आगे बढ़ेगा .

पर अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना होगा और सोशल मीडिया से ये यात्रा न करी जाए बस इसमें लड़ाई और यात्रा की रिपोर्टिंग हो .

भारत जोड़ो यात्रा का एक महत्वपूर्ण सन्देश ये भी है कि हिन्दुस्तान को समझना है तो गाँधीजी , बाबा आमटे की
तरह यात्राएं करनी चाहिए . कम से कम जो लोग आगे संसद में जाने वाले हैं उन्हें खूब ऐसी यात्राएं और घुमक्क्ड़ी करनी ही चाहिए .

राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में ‘जयतु जयतु घुमक्कड़-पन्था ‘

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here