जुलाई 2015 से उजागर,शिकायतें, जाँच, रिपोर्ट – कार्यवाही आज तक नहीं
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2005 में मान्यता रद्द करवाए गए निजि विवि से सम्बद्ध कालेजों को सरगुजा विवि से सम्बद्ध किये जाने से शुरू हुई गड़बड़ियाँ, 2014 से बांटी गयी ऐसी डिग्रियां
रायपुर.30 अक्टूबर 2019(इंडिया न्यूज रूम) छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात् सरकार ने अनेक विश्वविद्यालयों की स्थापना में प्रदेश में शिक्षा के विकास का सपना दिखाया किन्तु बिना उपयुक्त प्राध्यापकों की नियुक्ति के ये सफ़ेद हाथी संस्थान विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार के केंद्र बन कर रह गए हैं. सरगुजा विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से लगा था कि पिछड़े सरगुजा इलाके में विकास की रौशनी का केंद्र सरगुजा विश्वविद्यालय बनेगा लेकिन वहां की शिकायतें अक्सर आती रही हैं किन्तु तमाम गड़बड़ियों की बाकायदा लिखित शिकायतों के बाद भी पिछली रमन सरकार द्वारा कोई कार्यवाही न किया जाना उच्च अधिकारियों, नेताओं की कथित संलिप्त होने की ओर इशारा करता है.

पूर्व कुलपति सरगुजा विश्वविद्यालय एवं शिक्षाविद प्रो. एस. के.वर्मा शिकायतों पर कार्यवाही न होने से दुखी
इस सम्बन्ध में वर्ष 2005 से 2013 तक स्वयं इस विश्वविद्यालय के कुलपति रहे एस के वर्मा की इस सम्बन्ध में खुलासा किये जाने के बाद भी वर्तमान कुलपति , रजिस्ट्रार , उच्च शिक्षा विभाग , पुलिस महानिरीक्षक एवं राज्यपाल कार्यालय द्वारा कोई कार्यवाही न किया जाना इस बात रेखांकित करता है कि इस मामले में निश्चित रूप से बड़े बड़े मगरमच्छ शामिल हैं, जिनके इशारे पर सारी जाँच कार्यवाही सहम कर खामोश हो जाती रही. 3 अगस्त 2015 को प्रतिष्ठित अखबार पत्रिका में छपी रिपोर्ट में 2005- 06 और 2006- 07 में 12 वी पास करने वालों को संपर्क करके इस तरह की डिग्री 2014 में बेचने की खबर भी प्रकाशित हुई है.
खुलासा कैसे हुआ -:
बातचीत में प्रो. एस. के. वर्मा बताते हैं – “किसी महाविद्यालय के लिए गणित विषय के व्याख्याता पद के लिए 2016 में साक्षात्कार में उन्हें एक उम्मीदवार से सम्बंधित विषय के मूलभूत बातों की जानकारी न रखने के कारण योग्यता पर संदेह हुआ और उससे अध्ययन सम्बन्धी जानकारी पूछे जाने पर सरगुजा विश्वविद्यालय से 2014 में उत्तीर्ण होने की जानकारी मिली”. जाली अंकसूची पर सन्देह होने पर RTI के माध्यम से उन्होंने बाक़ी डिटेल्स भी निकलवाये जिससे लगभग 1100 छात्रों का विभिन्न डिग्रियों सम्बन्धी फर्जीवाड़ा उजागर हुआ . नवम्बर 2017 में जब दस्तावेज निकलवाये तो 1106 ऐसी फर्जी अंकसूचियों का पता चला, इनमे से 90 फीसदी को उच्च प्रथम श्रेणी के नंबर मिले हैं. इस समय आर .डी. शर्मा रजिस्ट्रार थे एवं प्रोफ़ेसर बी .एल. शर्मा कुलपति थे जिन्हें उस समय शिकायतें की गयी. तथ्यों के सामने आने के बाद लगभग 76 वर्ष के वयोवृद्ध पूर्व कुलपति सरगुजा विश्वविद्यालय एवं शिक्षाविद प्रो. एस. के.वर्मा ने तथ्यों के साथ कुलपति को जाँच करवाने पत्र भेजा तथा उनसे चर्चा भी की, जिस पर उन्हें जाँच का आश्वासन मिला किन्तु कुछ भी नहीं हुआ , फिर पुलिस उच्चाधिकारी को इस सम्बन्ध में जाँच एवं कार्यवाही हेतु लिखित शिकायत की, किन्तु किसी किस्म की कार्यवाही के बजाय सिर्फ पत्र को एक विभाग से दूसरे विभाग में उचित कार्यवाही के रिमार्क के साथ पत्र भेजा जाता रहा . पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर एस.के. वर्मा बताते हैं – “अनुसार स्पष्ट तौर पर इन गड़बड़ियों में संलिप्त होने वाले व्यक्तियों रोहणीप्रसाद तथा शकील अहमद के विषय में लिखित जानकारी देने के बाद भी, कोई कार्यवाही नहीं की गयी.”
दरअसल 04 फरवरी 2005 को सुप्रीम कोर्ट का निजि विश्वविद्यालयों के सम्बन्ध में एक फैसला आया था, जिसमे निर्धारित न्यूनतम अर्हता न रखने वाले निजि विश्वविद्यालयों की मान्यता पूरी तरह रद्द करने के साथ ही छात्रों को हानि न होने देने के लिए उन विश्वविद्यालयों को महाविद्यालय के रूप में कार्य करने तथा स्थानीय शासकीय विश्वविद्यालयो से उनकी औपचारिकता पूरी करते हुए सम्बद्ध करने का रास्ता बताया गया था . इस आधार पर 2006 को छात्रों का पंजीयन उल्लेखित करके 2008 में खुलने वाले सरगुजा विश्वविद्यालय में निजि संस्था के विद्यार्थियों को किसी तरह से पंजीकृत करके ये स्नातक , स्नातकोत्तर की अंकसूचियाँ जारी की गयीं और AICTC से बिना मान्यता लिए बी ई,एम टेक, एम बी ए जैसे तकनीकी डिग्री कोर्स की अंकसूचियाँ भी बाँट दी गयीं. जबकि तकनीकी कोर्स की मान्यता AICTC द्वारा एक- एक महाविद्यालय में उपलब्ध आधारभूत संरचना और फैकल्टी के अनुसार पृथक पृथक दी जाती है.

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कार्यवाही न होने की इस टालमटोल की स्थिति से व्यथित हो कर प्रो. एस के वर्मा ने इस सम्बन्ध में सभी विश्वविद्यालयों के मुख्य नियंत्रण प्राधिकारी कुलाधिपति राज्यपाल महोदय के पास भी इसकी लिखित शिकायत की किन्तु उन्हें किसी कमिटी के निष्कर्षो की कोई जानकारी अब तक नहीं मिली, यानि कोई कार्यवाही इसके बाद भी नहीं हुई .
क्या उच्च स्तरीय राजनैतिक संलिप्तता इसके पीछे रही है ?
यहाँ तक की तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन के होने के कारण कार्यवाही नहीं होते देख कर उन्होंने तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष के संज्ञान में भी ये मामला लाया किन्तु उसके बाद भी इस मसाले पर ख़ामोशी बनी रही श्री वर्मा का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष ने खुद सरगुजा क्षेत्र का राजनैतिक प्रतिनिधित्व करने के बाद भी इस मसले पर चुप्पी साध ली, उन्होंने समाचार माध्यमो से किसी किस्म का विरोध दर्ज करा के किसी प्रकार की जाँच की मांग तक नहीं की .
जाँच न होने से व्हिसिल ब्लोवर की भूमिका में रहे वयोवृद्ध प्राध्यापक पूर्व कुलपति एस के वर्मा बेहद व्यथित हैं.
नई सरकार से उम्मीदें – युनिवर्सिटी सिस्टम में सरकार के बदलने से कितना फर्क पड़ पायेगा ? क्योकि ऑटोनामस सिस्टम होता है विश्वविद्यालयो का , वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा करीब छ माह पूर्व इस मामले की जाँच के लिए कमिटी बनाने की जानकारी मिली है किन्तु वास्तव में अब तक कोई प्रगति दिखाई नहीं दे रही है .
अब कांग्रेस की बनी नई सरकार युवाओं के हितों के लिए बेहतर से बेहतर काम करना चाहती है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़िया रुझान के बयान सुन कर प्रो. एस के वर्मा की उम्मीदें जागी है कि शायद लोकसभा चुनाव आचार संहिता के बाद सरकार इन मामलों में, जहाँ हकदार युवाओं का हक़ मारने वाले इन फर्जी प्रमाणपत्रों के कारोबारियों पर अब कुछ कार्यवाही करेगी?
क्या छत्तीसगढ़ के प्रतिभाशाली छात्रों के साथ न्याय होगा ? जाली डिग्री बेचने खरीदने वालों को दंड मिलेगा ?

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