पत्रकार राजकुमार सोनी की पुस्तक ‘लाल गलियारे से’, विमोचन में जनसमुदाय की जबरदस्त भागीदारी का रिकार्ड

 रायपुर.किताब विमोचन में इतनी भीड़ कैसे ये सवाल सभी लोगो के मन में था .छत्तीसगढ़ के पत्रकार राजकुमार सोनी की नई किताब ‘लाल गलियारे से’ का विमोचन 15 मार्च 2019 को राजधानी रायपुर के सिविल लाइंस में स्थित वृंदावन हाल में संपन्न हुआ. विमोचन कार्यक्रम में सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं समेत आदिवासी इलाकों के प्रबुद्धजनों के अलावा समूचे छत्तीसगढ़ से जनसमुदाय की जबरदस्त मौजूदगी व भागीदारी ने सबको आश्चर्यचकित कर दिया. वृंदावन हाल के बड़े सभागार में ऐसा हुजूम यदा-कदा ही किसी बहुत बड़े कार्यक्रम के दौरान ही देखने में आया है.

लाल सलाम के नारे गूंजे – सोनी सोरी के प्रति सम्मान व्यक्त करने उनके मंच पर आने पर नारे लगे .

हालांकि पत्रकार सोनी की पिछली दो किताबें ‘बदनाम गली’ व ‘भेड़िए और जंगल की बेटियां’ के विमोचन के दौरान भी हतप्रभ कर देने वाली लोगों की उपस्थिति थीं, लेकिन इस बार तो पिछला रिकार्ड ध्वस्त हो गया. जितनी बड़ी संख्या में दर्शक-श्रोता हाल के भीतर थे उससे कई गुना ज्यादा हाल के बाहर थे. सभागार ऐसा ठसाठस भरा कि हॉल छोटा पड़ गया, जिसके चलते हॉल के दोनों दरवाज़ों को खोलना पड़ा.

सभागार से लेकर बाहरी दलान के हिस्से तक पत्रकार श्री सोनी के प्रशंसक, पाठकगण, शुभचिंतक, हितैषी, मित्रगणों के मौजूदगी, राजधानी समेत प्रदेश के लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है.प्रदेश में पहली बार किसी भी हिंदी पट्टी में किताब के विमोचन अवसर पर लोगों की मौजूदगी और किताब की बिक्री का जो रिकार्ड बना है वह अपने आपमें अनूठा है.

विमोचन में उपस्थित हुए देश भर के सम्मानितगण और खुले दिल से अपनी बात रखी  –

 

विमोचन कार्यक्रम में सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं समेत आदिवासी इलाकों के प्रबुद्धजनों के अलावा जनसमुदाय की जबरदस्त मौजूदगी व भागीदारी ने सबको आश्चर्यचकित कर दिया.वृंदावन हाल के बड़े सभागार में ऐसा हुजूम यदा-कदा ही किसी बहुत बड़े कार्यक्रम के दौरान ही देखने में आया है.

हालांकि पत्रकार सोनी की पिछली दो किताबें ‘बदनाम गली’ व ‘भेड़िए और जंगल की बेटियां’ के विमोचन के दौरान भी हतप्रभ कर देने वाली लोगों की उपस्थिति थीं, लेकिन इस बार तो पिछला रिकार्ड ध्वस्त हो गया. जितनी बड़ी संख्या में दर्शक-श्रोता हाल के भीतर थे उससे कई गुना ज्यादा हाल के बाहर थे. सभागार ऐसा ठसाठस भरा कि हॉल छोटा पड़ गया, जिसके चलते हॉल के दोनों दरवाज़ों को खोलना पड़ा .

सभागार से लेकर बाहरी दलान के हिस्से तक पत्रकार श्री सोनी के प्रशंसक, पाठकगण, शुभचिंतक, हितैषी, मित्रगणों के मौजूदगी, राजधानी समेत प्रदेश के लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. प्रदेश में पहली बार किसी भी हिंदी पट्टी में किताब के विमोचन अवसर पर लोगों की मौजूदगी और किताब की बिक्री का जो रिकार्ड बना है वह अपने आपमें अनूठा है.

लाल गलियारे से’ पुस्तक के विमोचन अवसर पर देश के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता-गांधीवादी चिंतक हिमांशु कुमार, आलोचक प्रणय कृष्ण, बसंत त्रिपाठी, पत्रकार कमल शुक्ला और प्रोफेसर सियाराम शर्मा, अरूण पन्नालाल खास तौर पर मौजूद थे.

सभी वक्ताओं ने यह माना कि कार्पोरेट जगत की लूट को संरक्षण देने के लिए भाजपा की सरकार ने सलवा-जूडूम जैसी स्थितियां पैदा की थीं और आदिवासियों को उनके ही अपने घर से बेदखल कर दिया था. माओवादियों के खात्मे के नाम पर आदिवासी राहत शिविरों तक लाए गए और फिर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया.सभी प्रमुख वक्ताओं ने किताब को खौफनाक समय और परिस्थितियों का दस्तावेज बताया.

विमोचन में उपस्थित हुए देश भर के सम्मानितगण –

लाल गलियारे से’ पुस्तक के विमोचन अवसर पर देश के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता-गांधीवादी चिंतक हिमांशु कुमार, आलोचक प्रणय कृष्ण, बसंत त्रिपाठी, पत्रकार कमल शुक्ला और प्रोफेसर सियाराम शर्मा, अरूण पन्नालाल खास तौर पर मौजूद थे.

सभी वक्ताओं ने यह माना कि कार्पोरेट जगत की लूट को संरक्षण देने के लिए भाजपा की सरकार ने सलवा-जूडूम जैसी स्थितियां पैदा की थीं और आदिवासियों को उनके ही अपने घर से बेदखल कर दिया था. माओवादियों के खात्मे के नाम पर आदिवासी राहत शिविरों तक लाए गए और फिर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया. सभी प्रमुख वक्ताओं ने किताब को खौफनाक समय और परिस्थितियों का दस्तावेज बताया.

पत्रकार राजकुमार सोनी ने खोले कई राज़ –

इस मौके पर किताब के लेखक राजकुमार सोनी ने बताया कि उनकी किताब में बस्तर से लेकर नेपाल के माओवादी इलाकों तक की गई चुनिन्दा रपटें हैं, जिससे गुजरकर पाठक यह अंदाजा तो लगा ही सकते हैं कि माओवाद की आड़ में भाजपा की सरकार कैसा कुछ भयावह खेल खेलने में लगी हुई थीं.

श्री सोनी ने कहा कि उनकी यह किताब पिछले साल ही प्रकाशित हो जानी थीं लेकिन तब अधिकांश प्रकाशकों ने इसे छापने से इंकार कर दिया था. प्रकाशक भी यह मान बैठे थे कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार जन सुरक्षा अधिनियम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें जेल में ठूंस सकती हैं.अभी भी प्रकाशन तय प्रोग्राम के अनुसार स्टेज पर नहीं आने का कारण धमकिया ही है .

प्रमुख अंश –

कार्यक्रम के प्रारंभ में भिलाई इप्टा के साथियों ने मणिमय मुखर्जी के नेतृत्व में कविता गीत श्रृंखला प्रस्तुति की .

अब आइये किताब की समीक्षा के बारे में बातचीत

बहरहाल माओवाद के नाम पर आदिवासियों के खात्मे के खिलाफ कई सवाल उठाने वाली किताब लाल गलियारे से… की भूमिका आलोचक प्रणय कृष्ण ने लिखी है. उनकी भूमिका का एक अंश ही यह बताने के लिए काफी है कि इस किताब का जनसामान्य के बीच क्यों आना जरूरी था?

प्रणय कृष्ण लिखते हैं – बस्तर युद्ध से आक्रांत है. हम और आप (यानी वे सब जो बस्तर कभी गए नहीं या ऐसी ही दूसरी समरभूमियों के साक्षी नहीं रहे) आखिर सच को कहां से पाएं? सरकारी रिपोर्टों में?

नेताओं के बयानों में? भूमिगत युद्धरत संगठनों के दस्तावेजों में?

बिके हुए इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के गला फाड़, कानफोडू कौआ-रोर में?

या वहां जहां परसेप्शन ही सब कुछ है, रियल्टी कुछ भी नहीं, आखिरकार सच का संधान कैसे होगा? तथ्यों, आकंडों, भंगिमाओं और बयानों पर परजीवियों की तरह पलती पत्रकारिता से अलग क्या जनता को सच जानने का हक नहीं है? किताब में वहीं सब कुछ है जो पत्रकार ने माओवाद प्रभावित इलाकों में अपनी आंखों से देखा है.

किताब का आवरण पृष्ठ अशोक नगर गुना के चित्रकार पकंज दीक्षित ने बनाया है. कार्यक्रम का संचालन भुवाल सिंह ठाकुर ने किया. कार्यक्रम में लाखन सिंह, सोनी सोरी,अरुणकांत शुक्ला ,संजय शाम . मिन्हाज असद ,  राजीव रंजन, जयप्रकाश नायर, प्रियंका शुक्ला, तुहीन देव, प्रदीप यदु, कुणाल शुक्ला, प्रीति उपाध्याय, संतोष यादव, ममता शर्मा, सौरां यादव, तामेश्वर सिन्हा, समेत अन्य सैकड़ों  सम्मानितगण उपस्थित रहे।

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