जीवन – पिच पर 100 बरस
खेलों की पिच पर शतकीय पारी बनाने वालों का खसरा – रकबा जोड़ कर इकट्ठा करने वालों का तो इस देश में पूरा कुनबा है. उन्हें पुरस्कार, सम्मान, और उनके इस असाधारण काम को लिपिबद्ध करने वाला मीडिया भी मौजूद है. अलावे, साधारण प्रशंसकों के रूप में उनकी असंख्य कीर्तनकार मण्डली भी उस पर जुगाली करती दिख जाती है! लेकिन जीवन रूपी मैदान में शतकीय पारी लगाने वालों के प्रति समाज का रवैया कैसा है? विशेषकर मीडिया का? मुझे नहीं पता! अलबत्ता मुझे ऐसे बुज़ुर्गवार हमेशा अपनी ओर खींचते, बुलाते से रहे हैं!
राजनांदगांव के उदयांचल सभागार में कन्हैयालाल अग्रवाल जी से मुलाक़ात मेरे लिए ख़ुद को ठीक करने का एक रामबाण उपाय थीं. आज उनके 100 वे जन्म दिन पर “जन्म शताब्दी समारोह” के निमित्त उनसे दूरदर्शन के लिए साक्षात्कार तो एक बहाना था. रियासतों वाला राजनांदगांव, वहाँ का तत्कालीन समाज, मुक्तिबोध, साम्यवाद एवं मार्क्सवाद ,सुशील कोठारी का मुक्तिबोध को लेकर रुझान, और स्वयं इस “शताब्दी पुरूष” का वर्धा में गाँधी जी के साथ सत्संग, हिस्लाप कॉलेज में पढ़ना, बनारस में बीता समय, शांतिनिकेतन प्रवास, सरस्वती पुस्तकालय के ज़रिए अध्ययन और कोलकाता के “विश्वामित्र” अखबार से पढ़ने और सामाजिक जीवन की ओर झुकने की न जाने कितनी स्मृतियाँ उनसे बातचीत में आईं. समय आधे धंटे से कम था लेकिन एक घंटे का टेप तैयार हो गया. उनकी याददाश्त के कहने ही क्या? निर्धारित फॉर्मेट के कारण मैं उन्हें टोक कर आगे बढ़ता तो वे पुनः उसी जवाब पर आ जाते, इसे पूरा कर लूँ कहते हुए! उनके कहन-सम्मोहन का असर ऐसा कि कई बार मैं खुद भूल जाता कि मुझे बात आगे बढ़ानी है! आँखें पूरी तरह ठीक. याददाश्त दुरुस्त, सुनना भी अबाधित। रोज़ाना सुबह ,शाम सिर्फ़ एक-एक रोटी की ख़ुराक! चेहरा आप आप देख सकते हैं जैसे “मलाई चाप.”
हमारी बातचीत के मध्य जब मैंने उनसे कहा कि इतनी उम्र तो मेरी पीढ़ी के लिए एक स्वप्न भर है! हो सकता है जीवन के छठे दशक में ही फोटो पर माला टँग जाए तो उनका चेहरा बिना आवाज़ किये हँसने लगा और अगले ही क्षण उन्होंने मेरे सिर पर हाथ धर दिया.
आजीवन खादी से प्रेम करने वाले इस व्यक्तित्व को देख कर लगा कुछ साल बाद आज़ादी के 75 वर्ष का जलसा मनने वाला है. गाँधी के 150 वर्ष का प्रसंग भी सामने है. ऐसे में देशभर में क्या उन लोगों की खोजखबर की जानी चाहिए जो शतकीय दायरा देख रहे हैं. आंखिर ऐसे लोगों के पास ही तो असल इतिहास सुरक्षित है!
रा जे श ग नो द वा ले