सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद चुनाव की तस्वीर साफ़ होने लगी
रायपुर . छत्तीसगढ में राजनीति और चुनाव मुख्यतः दो पार्टियो के बीच सत्ता की लड़ाई के रूप में देखी जाती रही है। मुद्दे आमतौर पर उस तरह से प्रभावी नही होते हैं जैसे कि दूसरे राज्यों में होते हैं ।नए राज्य में विकास की चुनौतियों का पीछा करते हुए अब 18 वर्ष का वयस्क छत्तीसगढ़ इस तरह के सवाल उठाने के काबिल हो गया है कि अगर विकास हुआ है तो किसका ?
यदि विकास को पैमाना मानें तो मूल छत्तीसगढ़िया इस चकाचौंध विकास में कहाँ पीछे छूट गया ?
क्या बैलाडीला की खुली लौह खदानों के इर्द गिर्द के गाँवो की लाल पानी , शिक्षा, स्वास्थ्य की स्थितियां सुधरी ? या अभी भी वहां की फसलें खदानों से बह कर आने वाले लाल पानी से तबाह हो ही रही हैं , कोरबा रायगढ़ के असुरक्षित खदानों के हालात, धूल और धुए का प्रदुषण कितना कम हो पाया , तिल्दा , बेमेतरा के औद्योगिक विकास में in इलाकों की हजारों हेक्टेयर जमीनें तो न्योछावर हो गयीं किन्तु गावों के युवाओं को चंद दिनों की असुरक्षित , अनियमित ठेका मजदूरी से ज्यादा कुछ मिल भी पाया या नहीं ?
छत्तीसगढ़ में बहुत पहले कांग्रेस का बोलबाला था तो उम्मीदवार को कांग्रेस की टिकिट मिलना ही ज्यादातर जीत की ग्यारंटी मानी जाती थी। डी पी मिश्र,अर्जुन सिंह जैसे बाहरी कद्दावर नेता भी यहाँ से चुनाव लड़ कर जीतते रहे , जबकि शुक्ल बंधुओं का तो एकछत्र दबदबा माना ही जाता था. सुधीर मुखर्जी,पुरुषोत्तम कौशिक जैसे समाजवादी नेता भी , जनकलाल ठाकुर जैसे शंकर गुहा नियोगी के शागिर्द भी राजनीति में अपनी चमक दिखाते रहे .
छत्तीसगढ़ राज्य के गठन और अजीत जोगी के कांग्रेस के कोटे से मुख्यमंत्री बनते तक अलग राज्य की नई चुनौतियां सामने आई . कांग्रेस के गुटबाजी और भाजपा के अटल जी के नेतृत्व में साफ्ट हिंदुत्व के बदलाव के चहरे ने यहाँ भी बदलाव लाया और डॉक्टर रमन सिंह के मुख्यमंत्री बनते तक अटल बिहारी जी के मुखड़े और भाजपा को एक मौका देने के नाम पर सरकार बनी, फिर कांग्रेस की गुटबाजी ने सत्ता दिलाई और 2013 को नरेंद्र मोदी की लहर ने जीत दिलाने में योगदान दिया, कांग्रेस में जोगी इफेक्ट ने कहीं न कहीं से भाजपा सरकार के लिए मदद ही की.
इस बार 2018 के चुनावों में हालात दूसरे हैं, क्योंकि इस बार सरकार को 15 साल हो चुके हैं और मोदी जी ने भी पहले कार्यकाल में साढ़े 4 साल पूरे कर लिए हैं, अब लहर उस तरह से नही दिखाई दे रही है। बदलाव की ऐसी कोई भारी लहर भी कांग्रेस नही ला पाई है और इंटरनेट की दुनिया ने मोबाइल फोन के माध्यम से हर घर तक अपनी पहुंच बना ली है , गली मोहल्ले में सरकार के कामकाज पर बातें करने वालों के समूह बना दिये हैं, बाजार में बढ़ती महंगाई, पेट्रोल डीजल कुकिंग गैस के अनियंत्रित दाम, महिलाओं के असुरक्षा की समस्याएं, रोजगार का चौतरफा संकट, नोटबन्दी के बाद उपजा आर्थिक सन्नाटा जो GST के बाद छोटे दुकानदारों पर भारी पड़ा ये ऐसे मुद्दे हैं जो हर आदमी को प्रभावित करते हैं।
2 अप्रैल के बिना किसी राजनैतिक नेतृत्व के आयोजित भारत बंद को मिली अप्रत्याशित सफलता ने प्रदेश के SC, ST, OBC वर्ग की आशाओं अपेक्षाओं को एक नए कलेवर के साथ सामने रखा जिसका असर चुनाव में देखने को मिल सकता है। कुल मिला कर मौजूदा हालात में किसी को भी स्पष्ट और प्रचंड बहुमत के आसार नही हैं।

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